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बुधवार, अगस्त 25, 2010

. ... ... तो बहुत मज़ा आया : रावेंद्रकुमार रवि की शिशुकविता

. ... ... तो बहुत मज़ा आया!

नाव चलाई पानी में, तो बहुत मज़ा आया!
दौड़ लगाई पानी में, तो बहुत मज़ा आया!


हम फिसले जब पानी में, तो बहुत मज़ा आया!
छप-छप-छप की पानी में, तो बहुत मज़ा आया!


कूद-कूदकर जब नाचे, तो बहुत मज़ा आया!
हम भीगे बरसात में, तो बहुत मज़ा आया!


नाव हमारी डूब गई, तो मज़ा नहीं आया!
फिर जब चढ़ा बुखार रात, तो मज़ा नहीं आया!


सारे तन में दर्द हुआ, तो मज़ा नहीं आया!
सूँ-सूँ-सड़-सड़ करी नाक, तो मज़ा नहीं आया!


नहीं जा सके विद्यालय, तो मज़ा नहीं आया!
घर के अंदर बंद रहे, तो मज़ा नहीं आया!

रावेंद्रकुमार रवि
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(पहले चित्र में : सरस पायस, शेष चित्र : गूगल सर्च से साभार)
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10 टिप्‍पणियां:

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

Buzz पर indu puri goswami ने कहा –

ये कविता तो मेरे पोतों और स्कूल के बच्चों के लिए
बहुत ही सरल,सरस और प्यारी है.
रिअली.
25 Aug 2010

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

वाह, छोटे बच्चों के लिये बहुत बढिया कविता.

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।
हिंदी भाषा की उन्नति का अर्थ है राष्ट्र की उन्नति।

Mithilesh dubey ने कहा…

हमें भी मजा आया पढ़कर ।

माधव( Madhav) ने कहा…

बहुत बढ़िया

डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरी ने कहा…

बहुत सुन्दर शिशु गीत है,चित्र भी बहुत सुन्दर हैं बधाई

Archana Chaoji ने कहा…

बहुत बढ़िया ......

Archana Chaoji ने कहा…

मुझे इसे गाना पडेगा .........हा हा हा हा ......

Chinmayee ने कहा…

देर से आने के लिए क्षमा चाहती हू क्या करू मम्मा आजकल बहुत व्यस्त है मै ब्लोग्स जगत में नहीं आ पाई

बहुत प्यारी रचना है आपकी ! मुझे बारिश के पन्नी में कूद कर नाचना बहुत पसंद है !

मनोज कुमार ने कहा…

वाह, पढा, तो मज़ा आया!

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