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रविवार, जून 26, 2011

उसको क्यों खा जाते हो? : निरंकारदेव सेवक की शिशुकविता

उसको क्यों खा जाते हो?

लाल टमाटर! लाल टमाटर!
मैं तो तुमको खाऊँगा।

रुक जाओ, मैं थोड़े दिन में
और बड़ा हो जाऊँगा।

लाल टमाटर! लाल टमाटर!
मुझको भूख लगी भारी।

भूख लगी है तो तुम खा लो
ये गाजर-मूली सारी।

लाल टमाटर! लाल टमाटर!
मुझको तो तुम भाते हो।

जो तुमको भाता है, भैया!
उसको क्यों खा जाते हो?

निरंकारदेव सेवक

8 टिप्‍पणियां:

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

यह रचना जितनी बार भी पढ़ता हूँ उतनी ही ताज़ी लगती है. यह सेवक जी की कालजयी रचना है.
सचमुच... 'निरंकार देव सेवक' जी ने बाल साहित्य की मन से सेवा की है.

Smart Indian ने कहा…

अरे वाह! सुन्दर रचना. अपने बरेली की ही विभूति सेवक जी से तो वैसे भी लगाव है।

Shubham Jain ने कहा…

बहुत सुंदर गीत और बहुत सुन्दर प्रस्तुति|

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सुंदर बाल गीत और सुन्दर प्रस्तुति|

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

बहुत प्यारी सी कविता ...

purnima ने कहा…

बहुत प्यारी सी कविता !!!!!!!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सचमुच... 'निरंकार देव सेवक' जी की बाल कविता बहुत सुन्दर है!

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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