tag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post7427210832279893896..comments2024-03-01T15:59:55.297+05:30Comments on सरस पायस: रुको कबूतर : डॉ. नागेश पांडेय "संजय" की नई शिशुकवितारावेंद्रकुमार रविhttp://www.blogger.com/profile/15333328856904291371noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post-17558859721286445592018-01-17T13:22:02.103+05:302018-01-17T13:22:02.103+05:30कबूतरों के स्वाभाव को देखकर मैंने एक कहानी लिखी है...कबूतरों के स्वाभाव को देखकर मैंने एक कहानी लिखी है जिसका शीर्षक है "कब्बूड़ा" ! नभ में उड़ते कबूतरों की एक आदत है जब कभी ज़मीन पर बिखरे हुए अनाज के दाने देखते हैं, तब बिना सोचे-समझे एक साथ वे नीचे उतरकर उन दानों पर टूट पड़ते हैं ! यही स्वाभाव इंसानों में पाया जाता है, स्कूलों में या कार्यालयों में मिठाई पर इनके एक साथ टूट पड़ने की प्रवृति इन इंसानों में देखी गयी है ! गाँवों की स्कूलों में इस तरह मिठाई पर टूट पड़ने को "कब्बूड़ा पड़ना" कहा गया है ! यदि आप यह कहानी पढ़ना चाहते हैं, तो आप ई पत्रिका साहित्य शिल्पी ओपन कीजिये और मेरी स्वरचित मारवाड़ी कहानी "कब्बूड़ा" पढ़िए, जैसे-जैसे आप इसे पढ़ते जायेंगे आप ठहाके लगाकर हंसते जायेंगे ! डरिये मत,साहित्य शिल्पी में यह कहानी आपको हिंदी में अनुवाद की हुई मिल जायेगी ! आप इसे पढ़ते-पढ़ते एक गांव की स्कूल के शिक्षकों के बारे में जानकारी ज़रूर लेंगे और कहेंगे 'इन ग्रामीण अध्यापकों की क्या मस्त ज़िन्दगी है ?' - दिनेश चन्द्र पुरोहित [लेखक एवं अनुवादक] ई मेल dineshchandrapurohit2@gmail.comदिनेश चन्द्र पुरोहितhttps://www.blogger.com/profile/08730675799406850816noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post-71683877659775353692016-01-10T11:46:58.614+05:302016-01-10T11:46:58.614+05:30वहुत सुन्दरवहुत सुन्दरAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post-55708878993962019762010-12-28T17:59:08.495+05:302010-12-28T17:59:08.495+05:30कबूतर पर डा. नागेश सर की कविता पढ़कर मन तारो ताजा...कबूतर पर डा. नागेश सर की कविता पढ़कर मन तारो ताजा हो गया . फोटो इतने अच्छे आप कैसे ले आते हैं ?Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/05781577960687207037noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post-17715772062457252652010-12-28T10:26:17.864+05:302010-12-28T10:26:17.864+05:30बहुत सुन्दर कविता....बधाई.बहुत सुन्दर कविता....बधाई.Akshitaa (Pakhi)https://www.blogger.com/profile/06040970399010747427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post-23614767428850144522010-12-26T15:39:38.180+05:302010-12-26T15:39:38.180+05:30अरे वाह!
कितनी जीवन्त कविता है!
नागेश जी को बहुत-ब...अरे वाह!<br />कितनी जीवन्त कविता है!<br />नागेश जी को बहुत-बहुत बधाई!Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post-409881174993506172010-12-26T10:49:44.397+05:302010-12-26T10:49:44.397+05:30एकदम लयबद्ध लिखा है आपने..
बिलकुल जैसी बचपन में कि...एकदम लयबद्ध लिखा है आपने..<br />बिलकुल जैसी बचपन में किताबों में पढते थे...Satish Chandra Satyarthihttps://www.blogger.com/profile/09469779125852740541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-9190241136230512331.post-25610971216388282842010-12-26T09:30:59.559+05:302010-12-26T09:30:59.559+05:30your editing is माशा अल्लाहyour editing is माशा अल्लाहडॉ. नागेश पांडेय संजयhttps://www.blogger.com/profile/02226625976659639261noreply@blogger.com