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सोमवार, नवंबर 07, 2011

रावेंद्रकुमार रवि की बालकहानी : सुंदर कौन?

सुंदर कौन ?

सोनाली और रूपाली जुड़वाँ बहनें हैं। सब प्यार से उन्हें सोना-रूपा कहकर पुकारते हैं। दोनों ही पढ़ने में बहुत तेज़ हैं और लगभग हर काम में आगे रहती हैं। अपने नामों की ही तरह वे दोनों सुंदर भी बहुत हैं।

वे एक-दूसरे को बहुत चाहती हैं। हमेशा हिल-मिलकर रहती हैं। यदि कभी-कभार किसी बात पर झगड़ा हो भी जाता है, तो जल्दी ही मेल भी हो जाता है। वे एक-दूसरे के बिना रह ही नहीं पाती हैं।

एक बार की बात है - दोनों बहनों ने एक साथ बैठकर फ़ोटो खिंचवाया। जब फ़ोटो बनकर आया, तो वे दोनों उसे देखने लगीं।

देखते-देखते सोना बोल पड़ी - ‘‘तेरा फ़ोटो अच्छा नहीं आया !’’

‘‘क्यों ? क्या कमी है इसमें ?’’ - झट से रूपा ने भी पूछ लिया।

‘‘ख़ुद ही देख, तेरी आँखें कैसी मिची जा रही हैं !’’ - सोना ने थोड़ा-सा मुँह बनाते हुए कहा।

इस पर रूपा और ज़्यादा मुँह टेढ़ा करके बोली - ‘‘तो तेरा फ़ोटो कौन-सा अच्छा आया है ? देख, अपनी नाक तो देख। कैसी पकौड़े की तरह फूली जा रही है !’’

‘‘चल-चल ! मेरा फ़ोटो ज़्यादा सुंदर है !’’ - सोना ने चिढ़कर कहा, तो रूपा ने फ़ोटो उसके हाथ से छीनकर उसे धक्का दे दिया।

इसके बाद काट खाने जैसे अंदाज़ में सोना से बोली - ‘‘हट ! मेरा फ़ोटो ज़्यादा सुंदर है !’’

एकदम बात इतनी बढ़ गई कि हाथापाई तक की नौबत आ गई। यदि माँ बीच में न आ जातीं, तो शायद लड़ाई हो ही जाती।

फ़ोटो की तो धज्जियाँ उड़ गईं। उसके टुकड़े कमरे में इधर-उधर बिखर गए। सोना-रूपा में बोलचाल बंद हो गई।

ऐसा पहली बार हुआ था। ख़ुद उन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे दोनों आपस में इतनी बुरी तरह लड़ने के लिए कैसे तैयार हो गईं !

माँ ने सोचा कि अभी फिर मिलकर खेलने लगेंगी। ऐसा तो हमेशा होता है। लेकिन जब शाम तक वे दोनों एक-दूसरे से नहीं बोलीं, तो माँ को बहुत हैरानी हुई। शाम को उन्होंने उनके पापा को सारी बात बताई।

पहले तो पापा कुछ देर सोचते रहे। फिर उन्होंने दोनों को अपने पास बुलाया और बोले - ‘‘जाइए, अपनी-अपनी कॉपी-पेंसिल लेकर आइए। हम फ़ैसला करेंगे कि आप दोनों में से कौन ज़्यादा सुंदर है !’’

जब दोनों कॉपी-पेंसिल ले आईं, तो उन्होंने बोलना शुरू किया। वे दोनों लिखने लगीं --

(1) एक फूल का पौधा और उसके नीचे बैठा एक ख़रगोश का बच्चा बनाना है।
(2) गणित में अभ्यास पाँच का तीसरा और छठा प्रश्न हल करना है।
(3) सामान्य ज्ञान के पाँच प्रश्नों के उत्तर बताने हैं।
(4) एक पृष्ठ का इमला लिखना है।
(5) याद की हुई एक कविता सुनानी है।

यह सब लिखवाने के बाद पापा ने कहा - ‘‘पहले आप लोग शुरू के दो प्रश्न हल कीजिए। उसके बाद मैं सामान्य ज्ञान के प्रश्न पूछूँगा, इमला बोलूँगा और फिर आप लोग मुझे कविता सुनाएँगी।’’

हल जाँचने के बाद पापा ने बताया - ‘‘फूल का पौधा तो सोना ने बहुत सुंदर बनाया है, लेकिन ख़रगोश का बच्चा रूपा का ज़्यादा अच्छा बना है। गणित के प्रश्न दोनों ने सही हल किए हैं।’’

सामान्य ज्ञान में शुरू के तीन प्रश्नों के उत्तर सोना ने सही बताए और बीच के तीन रूपा ने। यानि कि दोनों ने तीन-तीन प्रश्नों के उत्तर सही बताए।

फिर उन्होंने इमला बोला। सोना की पाँच और रूपा की सात ग़लतियाँ आईं। कविता रूपा ने फटाफट सुना दी, पर सोना अंत में थोड़ा-सा अटक गई।

अब पापा ने उनसे पूछा - ‘‘बताइए, आप दोनों में से कौन ज़्यादा होशियार है ?’’

‘‘ ... ... ’’ - दोनों ने नज़रें झुका लीं।

‘‘अरे भइ, उत्तर दीजिए !’’ - पापा ने फिर कहा।

लेकिन उन्हें कोई उत्तर सूझ ही नहीं रहा था। माँ धीरे-धीरे मुस्कुरा रही थीं।

पापा ने दोनों के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा - ‘‘अब तो आप दोनों समझ ही गई होंगी कि बुद्धि और गुण के आगे सुंदरता कुछ भी नहीं है। जो व्यक्ति गुणवान और बुद्धिमान होता है, वह अच्छा होता है।

‘‘सुंदरता भी अच्छी होती है। लेकिन तब, जब अच्छे-अच्छे गुणों की ख़ुशबू उसके साथ हो !

‘‘और फिर आप तो दोनों ही सुंदर हैं और होशियार भी। बिल्कुल ग़ुलाब के फूलों की तरह ! फिर कैसी लड़ाई और कैसा झगड़ा ?’’ - यह कहते-कहते उन्होंने दोनों के गालों पर एक-एक पप्पी जड़ दी।

वे दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराने लगीं। एक-दूसरे से बोलने को बेचैन तो थीं ही। जल्दी ही फिर चहचहाने लगीं - ‘‘मम्माँ ! हमको भूख लगी है, जल्दी हमको खाना दो। चूहे पेट में कूद रहे हैं, जल्दी हमको खाना दो।’’

-- ♥♥ रावेंद्रकुमार रवि ♥♥ --

सबसे पहले यह कहानी इस रूप में छपी थी!

गुरुवार, नवंबर 03, 2011

जलेबी की मिठास-जैसा : यदि ऐसा हो जाए (कविता-संकलन)

यह है एक कविता-संकलन का मुखपृष्ठ!


और यह है इस संकलन के पीछे छपा फ़ोटो!


इस फ़ोटो में मुस्कुरा रहे हैं - सृजन 
और गुस्सा होने का अभिनय कर रही हैं - सृष्टि! 

इस संकलन में शामिल सभी कविताएँ 
इन दोनों के पापा ने रची हैं! 
सभी कविताओं के साथ चित्र भी हैं, 
पर अंदर के पृष्ठों पर रंगों का अभाव है!

वैसे तो इस संकलन में विभिन्न विषयों पर 
50 से अधिक कविताएँ शामिल हैं!
पर एक गीत मुझे बहुत अच्छा लगा! 
आप सब भी गाकर देखिए! 
बहुत मज़ा आएगा!

मुझे जलेबी दो

गरम-गरम रसदार करारी, मुझे जलेबी दो।
ओ अम्मा! झट प्यारी-प्यारी मुझे जलेबी दो।

सर्दी है अब इसका जलवा
सबको भाया है।
हलवाई ने अभी-अभी ही
इसे बनाया है।
चाय, पराँठे, मूँगफली,
हलवा की चाह नहीं।
काजू मेवे खाकर भी
मन बोले वाह नहीं।
अरे! टिफिन में ढेरों-सारी मुझे जलेबी दो।।
ओ अम्मा! झट प्यारी-प्यारी मुझे जलेबी दो।

जितनी खा पाऊँगा,
उतनी ही मैं खाऊँगा,
और बचेंगी जितनी,
उनको वापस लाऊँगा।
उन्हें साँझ को भिगो दूध में,
देना तुम अम्मा।
बड़े चाव से खाऊँगा मैं
करता यम-यम्मा।
होगी मुझ पर कृपा तुम्हारी, मुझे जलेबी दो। 
ओ अम्मा! झट प्यारी-प्यारी मुझे जलेबी दो।


और ये रहे जलेबी की मिठास-जैसी कविताएँ रचनेवाले 
सृष्टि और सृजन के पापा!


डॉ. नागेश पांडेय संजय
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