सोमवार, अक्तूबर 10, 2011
सो जा मेरे मन के हार : रावेंद्रकुमार रवि की पहली लोरी
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11 टिप्पणियां:
गीत तो अच्छा ही होगा यदि वह बच्चे को सुनाने में सफल हुआ. चित्र तो और भी सुंदर आये हैं. बधाई.
बहुत सुंदर लोरी....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
हमारी बधाई स्वीकारें ||
http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/10/blog-post_10.html
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_110.html
बहुत प्यारे चित्र और बहुत ही प्यारा गीत।
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कल 12/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बढि़या लोरी। बिटिया आपके गले से वैसे ही चिपटी हुई जैसे हार।
प्यारी लोरी ..बहुत प्यारे फोटो....
Wah ji Wah bahut hi khubsurat lori.
बहुत सुन्दर गीत और चित्र !
यह रचना और फोटो यादगार रहेंगे इस प्यार के !
शुभकामनायें आपको !
सुन्दर शब्द और साथ में सुन्दर छवि भी!
अत्यन्त हि भावपूर्ण!
"सोजा मेरे मन के हार!" … माधुर्य गुण के कारण लोरी बहुत ही रसभरी है। गीति बहुत ही आनंददायी है। इसकी गूँज से शिशु को बहुत ही अच्छी नींद आयेगी। बड़े कानों में पड़ते ही इसकी गेयता तनावों को विरेचित कर देने की क्षमता ले लेती है।
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