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सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

मान्या की दादी का एक बालगीत : पीछे-पीछे सब डिब्बों से

गिरिजा कुलश्रेष्ठ
पीछे-पीछे सब डिब्बों से
















नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!
उसे पकड़ने दौड़ पड़ा है
पीछे-पीछे सब घर!

चश्मा रखकर दौड़ीं दादी,
पुस्तक रखकर दादा,
हड़बड़-गड़बड़ पापा-मम्मी,
काम छोड़कर आधा,
चकराए चाचा चिल्लाए --
रोको, अरे, सँभलकर!
नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!

सबको पीछे देख, और
वह भागी तेज़ किलककर!
फूट पड़े दूधिया हँसी के
कितने प्यारे निर्झर!
उठा लिया गोदी में तो,
फिर उतरी मचल-मचलकर!
नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!

चटपट-चटपट गई किचन में,
सरपट-सरपट आँगन!
पीछे-पीछे सब डिब्बों से,
मान्या हो गयी इंजन!
चलती जाती ऐसे, जैसे --
घूमेगी दुनिया-भर!
नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मोहल्ला - कोटावाला, ख़ारे कुएँ के पास,
ग्वालियर, मध्य प्रदेश (भारत)

3 comments:





purnima ने कहा…
bachpan ki shrarte sabko pareshan karne vali hoti he. aapki kavita kafi sundar he. रावेंद्रकुमार ji




purnima ने कहा…
bachpan ki shrarte sabko pareshan karne vali hoti he. aapki kavita kafi sundar he. रावेंद्रकुमार ji




Prem Farrukhabadi ने कहा…
रचना बहुत प्यारी है .बधाई मैंने भी कोशिश की है देखे नन्ही मान्या घुटनों के बल चलने लगी किलक कर दादा बोले देखे रहना कही चली न जाए निकल कर सोच समझ न उस को कोई कहीं भी जा सकती है हाथ में उस के जो लग गया उस को खा सकती है

15 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

रचना बहुत प्यारी है .बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

bahut hi sunder rachna

Neha Pathak ने कहा…

अच्छा लगा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बच्चों की गतिविधियों को
सुन्दर शब्दों मे बाधा है!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ जी को बधाई!
रवि जी का धन्यवाद!

Unknown ने कहा…

वाह जितनी मासूम कन्या...........
उतनी मासूम कविता .
बधाई !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नन्ही मान्या ....बहुत प्यारी कविता....सुन्दर रचना के लिए बधाई

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत हीं सुन्दर और प्यारी रचना । पढ़कर बहुत हीं अच्छा लगा । फोटो भी बहुत सुन्दर है ।

राज भाटिय़ा ने कहा…

मान्या घुटनों के बल चलने लगी, ओर बन गई सब के लिये आफ़त की गुडिया, बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना पढते पढते यही लगा कि मान्या हमारे सामने ही घुटनो के बल चल रही है, बहुत प्यार मान्या को, बहुत सुंदर लगी मान्या की फ़ोटो भी

Udan Tashtari ने कहा…

प्यारी रचना!

ज्योति सिंह ने कहा…

बालपन में तो कृष्ण भगवान की झलक मिलती है और ये लीला आँखों को सुकून देता है ,इस अद्भुत रस में सब घुलना चाहते और आँगन की रौनक इनकी शरारतो से ही है ,बहुत सुन्दर रचना ,
sundar tasvir bhi

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

मान्या मेरे जीवन की एक खूबसूरत उपलब्धि है ।भाई रवि को मेरी बहुत-बहुत शुभ-कामनाएं कि उन्होंने कविता को पुनः प्रकाशित किया है ।सभी सह्रदय पाठकों को भी धन्यवाद। भाई रवि, मैं कविता की पाँचवी और सातवीं पंक्ति के विषय में फिर कहना चाहती हूँ कि वे अपने मूल रूप में कहीं अधिक उपयुक्त हैं--क्रमशः इस प्रकार--पुस्तक रख दादाजी....,काम छोड आधा जी ।होसके तो इन पंक्तियों को पूरी कविता की तरह मूल रूप में ही रखें ।मान्या की और भी खूबसूरत कविताएं है कहें तो भेज सकती हूँ

Smart Indian ने कहा…

बहुत सुन्दर!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Bahut sundar..padhkar maja aa gaya. Kabhi meri duniya men bhi ayen.

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत मासूम और खूबसूरत बालगीत। पूनम

Paise Ka Gyan ने कहा…
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