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मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

कह रहीं बालियाँ गेहूँ की : डॉ॰ नागेश पांडेय संजय की एक बालकविता

कह रहीं बालियाँ गेहूँ की
मधुर कान में काली कोयल गाए मस्त मल्हार!
बाँट रहे हैं फूल सभी को ख़ुशबू का उपहार!
पेड़ों ने पहनी है कोमल-नई-मनोहर वर्दी!
भीनी-भीनी धूप निकलने लगी कम हुई सर्दी!
लदे बौर से पेड़ आम के मस्त हवा संग झूमें!
सुध-बुध छोड़ तितलियाँ सरसों पर इठलाकर घूमें!
नई बालियाँ गेहूँ की कह रहीं लगाकर ठुमके -
‘उछलो, कूदो, थिरको, नाचो, आए दिन फागुन के!’
डॉ॰ नागेश पांडेय संजय

5 comments:


हरि ने कहा…
अति सुंदर बालगीत। हमें भी फाल्‍गुन की सुध आई। बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
सुन्दर चित्रों के माध्यम से, रंग बिखेरे होली के। फागुन आया, संग में लाया, मधुर तराने होली के। सुन्दर बाल गीत में, सुन्दर-सुन्दर रंग भरे हैं। वाह-वाह लिखने को, सतरंगी अक्षर उभरे हैं।।

seema gupta ने कहा…
" jitne sundr prakrtik chitr, utne hi sundr shabd....dil ko bha gye...behd mnmohak" regards

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…
ब्लॉगर creativekona ने कहा… भाई रावेन्द्र जी , डा.देशबंधु जी के साथ ही डा .नागेश जी का बालगीत ,इनके साथ ही आपके द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ्स की जुगलबंदी ....कुल मिलाकर मन खुश हो गया .आपके कवि,लेखक से तो परिचित था .आज आपके अन्दर बैठे डिजाइनर से भी परिचय कर लिया .बहुत बहुत बधाई आपको एवं डा.देशबंधु और डा.नागेश जी को . हेमंत कुमार

अरविंद राज ने कहा…
होली के प्राकृतिक रंगों से रंगी इस कविता ने हृदय को सराबोर कर दिया। उत्तम रचना के प्रकाशन हेतु सरस पायस को बधायी।

15 टिप्‍पणियां:

L.Goswami ने कहा…

चित्र सुन्दर हैं ...डेस्कटॉप में लगाने लायक

रचना भी अच्छी है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत चित्रों के साथ खूबसूरत कविता....रंग ही रंग खिल गए..

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह होली के प्राकृतिक रंगों से रंगी बहुत सुन्दर कविता तस्वीरें अपनी छठा बिखेर रही हैं

महावीर ने कहा…

सुन्दर शब्दों के साथ अनुपम चित्रों की छटा देखने योग्य हैं. बहुत सुन्दर बाल गीत. बधाई.
महावीर शर्मा

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

मेल से भेजा गया संदेश -

bahut sundar geet hai
aur bahut sundar presentation bhi.
aapko aur nagesh ji ko bahut bahut badhai....

dr.desh bandhu"shahjahanpuri"

मनोज कुमार ने कहा…

ओह! क्या ख़ूब! सुंदर चित्र .. सुंदर गीत।

दीपक 'मशाल' ने कहा…

wo geet yaad aa raha hai...'angna me aayi bahar....aisa mausam dekha pahlee baar.. koyal kooke-kooke gaaye malhaar....'
bahut sundar photo nikale..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

डॉ॰ नागेश पांडेय संजय का बालगीतःकह रहीं बालियाँ गेहूँ कीः

एक सुन्दर बालगीत तो है ही लेकिन

रवि जी!

आपने सुन्दर चित्रों से इसकी शोभा में चार चाँद लगा दिये हैं।

संपादक : बालप्रहरी ने कहा…

क्या बात है! मजा आ गया!
रचनाकार और छायाकार दोनों का कार्य सराहनीय है ।

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति!

एमाला ने कहा…

बच्चे निसंदेह फ़रिश्ता होते हैं.आपने बहुत अच्छा संसार रचा है.हमने भी अपने बच्चों के बहाने इन मासूमों के लिए एक दुनिया बनाने की कोशिश की है.आपका स्वागत है!

ज्योति सिंह ने कहा…

बहुत प्यारी रचना रावेन्द्र जी ,मिटटी की खुशबू ,लहलहाते फूल पौधे और लहराती गेहूं की बालियाँ और साथ में आपकी शब्दों की सुन्दरता ,सब मिलकर मन मोह लिए ,

Paise Ka Gyan ने कहा…

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