"सरस पायस" पर सभी अतिथियों का हार्दिक स्वागत है!

सोमवार, जनवरी 31, 2011

सारा दूध नहीं दुह लेना : सरस चर्चा (२७)

♥♥ आज सबसे पहले करते हैं यह प्रार्थना ♥♥ 

इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर हो ना 

हम चलें नेक रस्ते पे हमसे, भूल कर भी कोई भूल हो ना! 

- चैतन्य का कहना है -

मेरा फोटो
मेरा फोटो

यह सुंदर सी प्रार्थना तो आपने कई बार सुनी होगी! 
आज फिर  गणतंत्र दिवस पर  ईश्वर से हम सब यही प्रार्थना  करें!

और अब पढ़ते हैं

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक की यह प्यारी-सी शिशुकविता 

सारा दूध नहीं दुह लेना,

मुझको भी कुछ पीने देना। 

  


जी करता बन कर दस्ताने 
हाथों में उनके चढ़ जाऊँ!

मन ऐसा क्यों करता है? 
यह जानने के लिए बाल-मंदिर चलते हैं! 

वहाँ जाने-माने कवि दिविक रमेश की कविता छपी है!


यह देखिए स्पर्श ने अपने स्कूल के प्रोजेक्ट कार्य के लिए 
आलू महाशय को कितने सुंदर ढंग से सजाया है!


पंखुरी के पास एक नहीं और भी कई खिलौने हैं! 
क्या आपको देखने हैं?


पाखी की बहन तन्वी तीन महीने की हो गई है!
क्या आपके मन में इसकी इस मुस्कराहट को देखकर 
कोई मुस्कराती हुई कविता जन्म ले रही है? 


 अनुष्का की माँ ने भी इस बार एक बहुत बढ़िया गीत रचा है!

झक पक छुक छुक
झक पक छुक छुक
रेल चली भाई, रेल चली 


अभिनव सृजन पर प्रकाशित 
डॉ.नागेश पांडेय 'संजय'
का रोबोट पर रचा बालगीत भी मनभावन है!


ज़रा यह भी देखें कि माधव किस फ़िल्म के बारे में बता रहा है! 


यह आभार समूचे राष्ट्र की ओर लविज़ा व्यक्त कर रही है!

Laviza

अंत में पढ़िए "सरस पायस" पर प्रकाशित मेरा यह गीत!

उन्हें करेंगे हरदम याद 


आशाओं के फूल खिलाती,
पूरी होकर नई मुराद!
दूर गगन तक जाकर गूँजे,
हम सबका जोशीला नाद!
उन्हें करेंगे हरदम याद! 

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♥♥ रावेंद्रकुमार रवि ♥♥
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शनिवार, जनवरी 29, 2011

सारा दूध नहीं दुह लेना : डॉ. मयंक की शिशुकविता

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सारा दूध नहीं दुह लेना
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मेरी गइया बहुत निराली,
सीधी-सादी, भोली-भाली।

उसका बछड़ा बहुत सलोना,
प्यारा-सा वह एक खिलौना।

मैं जब गइया दुहने जाता,
वह "अम्माँ" कहकर चिल्लाता।

सारा दूध नहीं दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।

थोड़ा ही ले जाना भइया,
सीधी-सादी मेरी मइया।
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक
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गुरुवार, जनवरी 27, 2011

सबसे मीठा-मीठा बोलो : सुभद्राकुमारी चौहान की बालकविता

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सबसे मीठा-मीठा बोलो
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देखो कोयल काली है, पर मीठी है इसकी बोली!
इसने ही तो कूक-कूककर आमों में मिसरी घोली! 

कोयल! कोयल! सच बतलाओ, क्‍या संदेशा लाई हो?
बहुत दिनों के बाद आज फिर इस डाली पर आई हो!

क्‍या गाती हो, किसे बुलाती, बतला दो कोयल रानी!?
प्‍यासी धरती देख, माँगती हो क्‍या मेघों से पानी?

कोयल! यह मिठास क्‍या तुमने अपनी माँ से पाई है?
माँ ने ही क्‍या तुमको मीठी बोली यह सिखलाई है?

डाल-डाल पर उड़ना-गाना जिसने तुम्‍हें सिखाया है!
"सबसे मीठा-मीठा बोलो!" - यह भी तुम्‍हें बताया है!

बहुत भ‍ली हो, तुमने माँ की बात सदा ही है मानी!
इसीलिए तो तुम कहलाती हो सब चिड़ियों की रानी! 
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सुभद्राकुमारी चौहान की कविता : कोयल
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चित्र में नर कोयल है! नर कोयल ही गाता है! मादा कोयल गाना नहीं जानती!
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मंगलवार, जनवरी 25, 2011

उन्हें करेंगे हरदम याद : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत

उन्हें करेंगे हरदम याद!


जिनके दम से हैं आबाद!
उन्हें करेंगे हरदम याद!

अब हम में है ताकत इतनी,
सदा रहेंगे हम नाबाद!
अब न दिखाना हमको आँखें,
कर देंगे तुमको बरबाद!
उन्हें करेंगे हरदम याद!

आशाओं के फूल खिलाती,
पूरी होकर नई मुराद!
दूर गगन तक जाकर गूँजे,
हम सबका जोशीला नाद!
उन्हें करेंगे हरदम याद! 


रावेंद्रकुमार रवि 
(चित्र में हैं : मेरे विद्यालय के छात्र)

रविवार, जनवरी 23, 2011

गुब्बारे में बैठे-बैठे : सरस चर्चा (२६)

लविज़ा ने इस बार एक अनोखे अंदाज़ में पतंग उड़ाई!

Laviza

पर नन्ही परी इशिता ने कैसे उड़ाई होगी यह नन्ही-सी पतंग?



पाखी की दुनिया में एक अच्छी-सी कविता छपी है!

पाखी बिटिया हँसती है जब, 
दुनिया भी हँसने लग जाती। 
फूलों की बरखा हो जाती, 
धरती ख़ुशियों से भर जाती।

सलोनी रूपम के इस सलोने चित्र के साथ 
डॉ. नागेश पांडेय संजय ने अपने ब्लॉग अभिनव सृजन पर 
अपनी एक सलोनी कविता प्रकाशित की है! 
बादल भैया! बादल भैया!
मैं छोटी सी बच्ची हूँ।
नहीं किसी से झगड़ा करती,
सब कहते-‘‘मैं अच्छी हूँ।’’


सलोनी की एक गुड़िया भी है! 
उसे इस गुड़िया की शादी करनी है! 
इस ख़ुशी में चैतन्य अपने गिटार से एक मधुर धुन सुनाने जा रहा है!


इधर माधव अपने जन्म-दिन पर यह उपहार पाकर ख़ुश है!


उधर अनुष्का अपने डोरा स्कूटर की सवारी करके ख़ुश है! 



बाल-दुनिया में छब्बीस जनवरी पर वीरता पुरस्कार पानेवाले 
भारत के बहादुर बच्चों के बारे में जानकारी दी गई है!


और ज़रा यहाँ देखिए कि क्या हो रहा है!


अब पढ़ते हैं "सरस पायस" पर प्रकाशित यह मनभावन गीत! 
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गुब्बारे में बैठे-बैठे 
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उड़ा जा रहा आसमान में
रंग-रँगीला गुब्बारा!
गुब्बारे में बैठे-बैठे
मैंने देखा जग सारा!
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सलोनी राजपूत 
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अंत में चलते-चलते एक प्यारी-सी मुस्कान चाहिए! 
लविज़ा को आपकी अच्छी-सी तस्वीर लेनी है! 

Laviza
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रावेंद्रकुमार रवि
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शुक्रवार, जनवरी 21, 2011

प्रकृति : पूर्वा शर्मा की नई कविता

प्रकृति


पहाड़ों से खिलाई
फूलों से सजाई
ईश्वर ने हमारी यह धरती थी जब बनाई
कोई कमी न थी छोड़ी
पर इक ग़लती कर दी थोड़ी
दे दी अक्ल हमें ज़्यादा
ग़लत था मानवीय इरादा
तभी पहाड़ हो गए हैं खाली
क्या करे बेचारा माली
जब फूलों का ही मिट गया है नामोनिशान
अब तो ईश्वर भी हो गए हैं हैरान
छिपा है
हाँ, छिपा है इंसानी जीत की हर ख़ुशी में
एक बड़ा नुकसान
जिससे हर क़दम पर हो रही है
प्रकृति परेशान


पूर्वा शर्मा
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अजेय से साभार

बुधवार, जनवरी 19, 2011

आओ पास, तुम्हें नहलाऊँ : चंद्रमोहन दिनेश

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आओ पास, तुम्हें नहलाऊँ
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सुअर, सुअर, ओ मेरे भइया!
चले झूमते भरी तलइया!

कितने गंदे रहते हो तुम!
साफ़ नहीं क्यों रहते हो तुम?

आओ पास, तुम्हें नहलाऊँ!
तुमको अपने साथ खिलाऊँ! 
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चंद्रमोहन दिनेश 
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सुअरों के चित्र : गूगल सर्च से साभार
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सोमवार, जनवरी 17, 2011

गुब्बारे में बैठे-बैठे : सलोनी राजपूत का नया बालगीत

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गुब्बारे में बैठे-बैठे
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उड़ा जा रहा आसमान में
रंग-रँगीला गुब्बारा!
गुब्बारे में बैठे-बैठे
मैंने देखा जग सारा!

हवा चली तो ख़ूब हिले,
आपस में फिर गले मिले!
हरी-भरी सुन्दर बगिया में
हँसकर सुन्दर फूल खिले!
महक रहा है जग सारा!
उड़ा जा रहा ... ... .


ठुमक-ठुमक उड़ रही पतंग,
उसे देखकर मैं थी दंग!
इधर-उधर कुछ गोते खाकर
मेरे पीछे पड़ी पतंग!
झूम रहा है जग सारा!
उड़ा जा रहा ... ... . 

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सलोनी राजपूत
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शनिवार, जनवरी 15, 2011

उमंगों और पतंगों के त्योहार : सरस चर्चा (२५)

हमारे देश के कोने-कोने में जितने त्योहार मनाए जाते हैं, 
उतने शायद ही कहीं और मनाए जाते हों! 
देश के अलग-अलग प्रदेशों में मनाए जानेवाले ऐसे तीन त्योहार 
जनवरी में एक साथ आते हैं! मकर सक्रांति, पोंगल और लोहड़ी! 

चैतन्य ने अपने ब्लॉग से सभी को 

इन प्यारे-प्यारे त्योहारों के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ दी हैं! 

हैप्पी लोहड़ी..... हैप्पी संक्रांति..... हैप्पी पोंगल..... 





माधव ने भी अपने ब्लॉग से शुभकामनाएँ दी हैं!



अरे बाबा, हम शिमला में नहीं अपने घर में ही हैं...! ही-ही-ही! 
पंखुरी कुछ ऐसे ले रही है अपने चाचू और बुआ के साथ ठंड का मज़ा!


और इधर ठंड के स्पर्श से खड़खड़ाकर स्पर्श का तो दाँत ही टूट गया! 




लविज़ा भी परेशान है!
ओह.… आजकल तो कुछ ज्यादा ही ठंड पड़ रही है! 
कितने सारे तो गरम कपड़े पहनने पड़ते हैं! 
मुझे ना इत्ते भारी-भारी कपड़े पहनना बिल्कुल पसंद नहीं…
पर मम्मा भी ना…. टोपा भी पहनो… थर्मल भी... स्वेटर भी… 
और ना जाने क्या क्या…

Laviza

पाखी के लिए एक और कविता रची गई है, डॉ. नागेश द्वारा!


आदित्य ने इस बार चंडीगढ़ के "छतबीर जू" की सैर की!
यहाँ का दरियाई घोड़ा बहुत मस्त है... 
आदि ने बहुत क़रीब से देखा...  


इस बार सबसे अधिक चर्चा में रहा : नन्हे सुमन का विमोचन!


सुबह-सवेरे इसे देखकर 
खिल उठता है मन। 
सभी प्रफुल्लित होकर करते 
इसका अभिनंदन। 
-- अभिनव सृजन पर जाड़े की धूप का मनमोहक स्वागत कर रहे हैं --
डॉ. नागेश पांडेय संजय

अंत में सरस पायस पर पढ़िए मेरा नया गीत!
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लेकिन मुझसे करता प्यार! 
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मेरा पिल्ला है शैतान,
लेकिन मुझसे करता प्यार!

चुहिया और गिलहरी को यह 
दूर तलक दौड़ाता है! 
पर छोटा है अभी उन्हें यह 
पकड़ न बिल्कुल पाता है! 

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रावेंद्रकुमार रवि
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चित्र में हैं : सलोनी राजपूत और उसका पिल्ला
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