7 comments:
- बहुत प्यारा बालगीत लिखा है ।
- सुबह-सुबह ही चिड़िया रानी, आंगन में आ जाती है। इधर-उधर बिखरे चावल के, दाने सब खा जाती है। फुर्र से उड़ जाती यह, जब हम करते कुछ मक्कारी। चिड़िया रानी, मुझको और, भैया को लगती है प्यारी।
- आँगन में बिखरे दानों को फुदक-फुदककर खाती है! अगर पकड़ने दौड़ो उसको झट से वह उड़ जाती है! रावेन्द्र जी , बहुत अच्छा बालगीत है कृष्ण कुमार जी का ..उन्हें मेरी बधाई पहुंचाएं.
- chidiya hamesha se hi bachchoo ke liye aakarshan ka kendra rahi hai. Iski sundar baton ki sundar prastuti hui hai Saras Payas Par. Achcha Laga!
- chidiya hamesha se bachchon aur kaviyon ke beech vartalaap ka ek shaahakt madhyam rahi hai. Is kadi mein prastut balgeet ek bahut hi SARAS prayas hai. Badhai
- जितनी सुन्दर चिडिया रानी !उससे सुन्दर उसकी कहानी !! बधाई यादव जी !
- कविता पढ़कर बचपन और चिडि़या याद आई। पहले घर में चिडि़या और उसके घोंसले दिखाई पड़ते थे लेकिन अब चहचहाट सुननी हो तो आबादी से कहीं दूर जाना पड़ता है। कंक्रीट के जंगलों में अब उनके बसेरे कहां।