मंगलवार, अप्रैल 27, 2010
मेरा मन मुस्काया : रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत
शनिवार, अप्रैल 24, 2010
मंगलवार, अप्रैल 20, 2010
शुक्रवार, अप्रैल 16, 2010
लैपटॉप : अजय गुप्त का नया बालगीत
मंगलवार, अप्रैल 13, 2010
रंग-रँगीला : कृष्णकुमार यादव की एक बालकविता
8 comments:
- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
- जो काम नही कर पायें दूसरे, वो जोकर कर दिखलाये,सरकस मे जोकर ही, दर्शक-गण को बहुत रिझाये।नाक नुकीली, गाल गुलाबी,लम्बी टोपी पहने,उछल-कूद करके ये जोकर,सबको खूब हँसाये।
- April 12, 2009 11:04 AM टिप्पणी हटाएँ">
- परमजीत बाली ने कहा…
- सुन्दर बालगीत है।बधाई।
- April 12, 2009 11:58 AM टिप्पणी हटाएँ">
- संगीता पुरी ने कहा…
- रंग रंगीला जोकर ... बहुत सुंदर रचना।
- April 12, 2009 2:32 PM टिप्पणी हटाएँ">
- Syed Akbar ने कहा…
- सुन्दर बालगीत..........बधाई
- April 12, 2009 3:16 PM टिप्पणी हटाएँ">
- amlendu asthana ने कहा…
- apka blog pasand aaya. kahta hai jokar sara Zamana adhi hahkikat adha fasana. Krishna kr. ki kavita achchhi hai. Badhai
- April 14, 2009 11:03 PM टिप्पणी हटाएँ">
- डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरी ने कहा…
- रंग रंगीला कविता बहुत सुन्दर है और आकर्षक ढंग से प्रकाशित की गई है ! yadav ji aur ravi ji ko badhai!
- April 22, 2009 11:27 PM टिप्पणी हटाएँ">
- अविनाश वाचस्पति ने कहा…
- कोई और न कर सकेजोकर कर दिखाएहंसाने का मुश्किल कामसहजता से कर हंसाए।
- April 23, 2009 12:39 PM टिप्पणी हटाएँ">
- चंदन कुमार झा ने कहा…
- बहुत अच्छी रचनायें.भैया!!! मेरे ब्लाग पर आने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.कृप्या यूँ हीं मार्गदर्शन करते रहियेगा.
- April 23, 2009 6:06 PM टिप्पणी हटाएँ">
शनिवार, अप्रैल 10, 2010
माँग नहीं सकता न : पंकज शर्मा की एक लघुकथा
मेरे सामने खड़ी बस में बैठा एक आदमी पकौड़े खा रहा था ।
उसने खाते-खाते पकौड़े का एक टुकड़ा
करीब दस साल के उस लड़के के हाथ पर धर दिया,
जो कुछ देर से उसकी सीटवाली खिड़की के पास हाथ फैलाए खड़ा था ।
वह टुकड़ा अपनी शर्ट की जेब में डाल लिया।
मैंने उसके हाथ पर दो रुपए का सिक्का रखते हुए पूछा -
"तुमने पकौड़ा खाया क्यों नहीं ?"
पर अगले ही पल सँभलकर बोला - "यह मेरे भाई के लिए है!"
"क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है । माँग नहीं सकता न, इसलिए!"
प्लॉट नंबर - 19, सैनिक विहार,
सोमवार, अप्रैल 05, 2010
मेरे मन को भाई : सलोनी राजपूत का पहला शिशुगीत
देखा सुंदर फूल जहाँ पर,
मैंने सोचा पकड़ूँ इसको,
कन्या इंटर कॉलेज, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)
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