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मंगलवार, अप्रैल 27, 2010

मेरा मन मुस्काया : रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत

मेरा मन मुस्काया
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खिल-खिल करके, खिल-खिल करके,
मेरा मन मुस्काया
मेरी चिड़िया ने जब मुझको,
मीठा गीत सुनाया -
खिल-खिल करके, खिल-खिल करके,
मेरा मन मुस्काया!

मेरे पिल्ले ने जब बढ़कर,
मुझसे हाथ मिलाया -
खिल-खिल करके, खिल-खिल करके,
मेरा मन मुस्काया!

मेरे तोते ने जब मुझको,
लेकर नाम बुलाया -
खिल-खिल करके, खिल-खिल करके,
मेरा मन मुस्काया!

(पहले चित्र में : प्रियांशु ओम) 
(अन्य चित्र : गूगल सर्च से साभार)

शनिवार, अप्रैल 24, 2010

म्याऊँ करके उसे चिढ़ाती : आकांक्षा यादव की नई शिशु कविता


म्याऊँ करके उसे चिढ़ाती
दिन-भर टें-टें करता रहता,
राम-नाम भी जपता रहता।

बहुत प्यार से मैंने पाला,
मेरा तोता बहुत निराला।

उसको मिर्ची ख़ूब खिलाती,
पानी लाकर उसे पिलाती।

म्याऊँ करके उसे चिढ़ाती,
बिल्ली से मैं उसे बचाती।
आकांक्षा यादव

मंगलवार, अप्रैल 20, 2010

आई परीक्षा, मत घबराओ : विश्वबंधु की एक बालकविता

आई परीक्षा, मत घबराओ : विश्वबंधु की एक बालकविता

आई परीक्षा मत घबराओ,
पढ़ने में तुम मन लगाओ।

आई परीक्षा मेहनत करो तुम,
अच्छे बच्चे बनकर रहो तुम।

ख़ूब पढ़कर
तुम सच्चे बनोगे,
मेहनत कर
तुम अच्छे बनोगे।

आई परीक्षा ख़ूब पढ़ो तुम,
पढ़-लिखकर आगे बढ़ो तुम।

♥ (( विश्वबंधु )) ♥♥

शुक्रवार, अप्रैल 16, 2010

लैपटॉप : अजय गुप्त का नया बालगीत

लैपटॉप
नई अटैची-जैसा आख़िर,
भालू दादा क्या ले आए?

मित्रो, यह तो लैपटॉप है,
कंप्यूटर का छोटा भाई।
जो कुछ भी है कंप्यूटर में,
इसमें भी वो हर अच्छाई।

बहुत कठिन से कठिन प्रश्न सब,
इस डिब्बे ने हैं सुलझाए।

इस डिब्बे में मीठे गाने,
चलते-फिरते चित्र मनोरम।
बटन दबाओ मॉनीटर पर,
हाज़िर हो जाता हर मौसम।

साइट खोलो, दुनिया-भर में,
क्या होता, मालुम हो जाए।

शिक्षा, औषधि, गणित, डिज़ाइन,
खेल, तमाशे, खाते, लेज़र
इसका सदुपयोग ही करना,
दुरुपयोग, जी करना नेवर।

माउस से कर्सर के द्वारा,
मॉनीटर पर सब कुछ आए।

अधिक देखने से आँखों पर,
बुरा असर पड़ता है भाई।
और व्यर्थ के गेम छोड़कर,
समय बचाना है चतुराई।

इसके अनियंत्रित प्रयोग को,
आवश्यक है रोका जाए।

पूरे जंगल की गतिविधियाँ,
हम तक आख़िर कैसे लाते?
भारी-भरकम कंप्यूटर को,
इधर-उधर कैसे ले जाते?

केवल यही ध्यान में रखकर,
शायद लैपटॉप ले आए।
रचनाकार : अजय गुप्त, चित्रकार : अरविंद राज

मंगलवार, अप्रैल 13, 2010

रंग-रँगीला : कृष्णकुमार यादव की एक बालकविता

रंग-रँगीला
गाल गुलाबी, नाक नुकीली,
लंबी टोपी पहन चिढ़ाए।
उछले-कूदे, चले मटककर,
पहिए पर चढ़ उसे चलाए।
रंग-रँगीला बनकर आए,
सबके मन को ख़ुश कर जाए।
हम सब देख बजाते ताली,
जोकर सबको ख़ूब हँसाए।
झूला झूले चहक-चहककर,
चढ़े सायकिल, तो लहराए।
कितना अच्छा है यह जोकर,
कभी किसी को नहीं रुलाए
कृष्णकुमार यादव
(जोकरों के फ़ोटो : संबंधित वेबसाइटों से साभार)

8 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
जो काम नही कर पायें दूसरे, वो जोकर कर दिखलाये,सरकस मे जोकर ही, दर्शक-गण को बहुत रिझाये।नाक नुकीली, गाल गुलाबी,लम्बी टोपी पहने,उछल-कूद करके ये जोकर,सबको खूब हँसाये।
परमजीत बाली ने कहा…
सुन्दर बालगीत है।बधाई।
संगीता पुरी ने कहा…
रंग रंगीला जोकर ... बहुत सुंदर रचना।
Syed Akbar ने कहा…
सुन्दर बालगीत..........बधाई
amlendu asthana ने कहा…
apka blog pasand aaya. kahta hai jokar sara Zamana adhi hahkikat adha fasana. Krishna kr. ki kavita achchhi hai. Badhai
डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरी ने कहा…
रंग रंगीला कविता बहुत सुन्दर है और आकर्षक ढंग से प्रकाशित की गई है ! yadav ji aur ravi ji ko badhai!
अविनाश वाचस्पति ने कहा…
कोई और न कर सकेजोकर कर दिखाएहंसाने का मुश्किल कामसहजता से कर हंसाए।
चंदन कुमार झा ने कहा…
बहुत अच्छी रचनायें.भैया!!! मेरे ब्लाग पर आने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.कृप्या यूँ हीं मार्गदर्शन करते रहियेगा.

शनिवार, अप्रैल 10, 2010

माँग नहीं सकता न : पंकज शर्मा की एक लघुकथा

माँग नहीं सकता न
बस-स्टैंड पर खड़ा हुआ मैं, बस का इंतज़ार कर रहा था ।
मेरे सामने खड़ी बस में बैठा एक आदमी पकौड़े खा रहा था ।
उसने खाते-खाते पकौड़े का एक टुकड़ा
करीब दस साल के उस लड़के के हाथ पर धर दिया,
जो कुछ देर से उसकी सीटवाली खिड़की के पास हाथ फैलाए खड़ा था ।

मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि लड़के ने झट से
वह टुकड़ा अपनी शर्ट की जेब में डाल लिया।

कुछ ही देर बाद वह मेरे सामने भी हाथ फैलाकर खड़ा हो गया ।
मैंने उसके हाथ पर दो रुपए का सिक्का रखते हुए पूछा -
"तुमने पकौड़ा खाया क्यों नहीं ?"

अचानक पूछे गए इस सवाल से वह थोड़ा सकपकाया,
पर अगले ही पल सँभलकर बोला - "यह मेरे भाई के लिए है!"

"भाई के लिए क्यों ?" - मैंने दूसरा सवाल भी पूछ लिया ।

इस बार उसने अपने चेहरे पर खिलती हुई मुस्कान के साथ बताया -
"क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है । माँग नहीं सकता न, इसलिए!"




पंकज शर्मा

प्लॉट नंबर - 19, सैनिक विहार,
विकास पब्लिक स्कूल के सामने, जंडली, अंबाला शहर (हरियाणा)

सोमवार, अप्रैल 05, 2010

मेरे मन को भाई : सलोनी राजपूत का पहला शिशुगीत




मेरे मन को भाई!

रंग-बिरंगे पंखोंवाली
तितली उड़कर आई!
मेरे मन को भाई!

देखा सुंदर फूल जहाँ पर,
अपनी सूँड़ उठाई!
चूसा उसका रस मीठा फिर,
धीरे से मुस्काई!
मेरे मन को भाई!

मैंने सोचा पकड़ूँ इसको,
मगर हाथ ना आई!
इधर उड़ी फिर उधर उड़ी वह,
उसने रेस लगाई!
मेरे मन को भाई!

सलोनी राजपूत
--
कक्षा - :डॉ. सुदामा प्रसाद बाल विद्या मंदिर
कन्या इंटर कॉलेज, शाहजहाँपुर (.प्र.)

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