"सरस पायस" पर सभी अतिथियों का हार्दिक स्वागत है!

सोमवार, फ़रवरी 28, 2011

हम वो करेंगे, दिल जो कहे : सरस चर्चा (३०)

आज सबसे पहले सैर करते हैं, रिमझिम के इस सौर-मंडल की!



अब देखते हैं लविज़ा द्वारा की गई 
डहेलिया के फूलों की यह मुस्कराती हुई फ़ोटोग्राफ़ी!


DSC04424

कित्ता मज़ा आ रहा है, जंगल के बीच से गुजरते हुए! 
पर यह पाखी बैठी किस जानवर की पीठ पर है?



पाखी की तन्वी अब चार महीने की हो गई है! 
तन्वी अब पहले से ज़्यादा चुलबुली भी हो गई है!


कुछ जगह स्कूली-परीक्षाओं के दिन क़रीब आ चुके हैं! 
अभिनव सृजन पर डॉ. नागेश पांडेय संजय अपने एक गीत से 
मन लगाकर पढ़ने-लिखने के इन दिनों की याद दिला रहे हैं!


नन्हे-मुन्ने पर इंदु पुरी गोस्वामी ने स्लेज गाड़ी पर 
कविता रचने की बहुत अच्छी कोशिश की है!


भारत में तो अब मौसम गरमाने लगा है! 
पर कनाडा में बेचारा चैतन्य क्या करे?


बाल-मंदिर में डॉ. अजय जनमेजय की रेल चल रही है!


"हम वो करेंगे, दिल जो कहे!" 
ज़रा पहचानिए तो, किसका है यह तकिया क़लाम!


अब पता करते हैं कि क्या रहस्य छुपा है, 
स्पर्श द्वारा बनाए गए इस चित्र में!


ज़रा यह भी तो देख लीजिए! 
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक क्या कर रहे हैं!

भैंस हमारी बहुत निराली।
खाकर करती रोज जुगाली।। 
कहती दूध निकालो आकर।
धन्य हुए हम इसको पाकर।।



और अंत में "सरस पायस" पर पढ़िए मेरी कहानी! 
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मालूम नहीं
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राहुल के पापा फौज में नौकरी करते हैं। 
आज चार महीने के बाद वे घर आनेवाले हैं। 
राहुल बेचैनी से उनका इंतज़ार कर रहा है। 
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पड़ोस की छत से नन्हे सरदारजी ने ठुमके दे-देकर 
अपनी पतंग आसमान की ओर बढ़ानी शुरू कर दी है। 
इस समय वह अंटिया के ठीक ऊपर आकर नाच रही है ।


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रावेंद्रकुमार रवि 
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शनिवार, फ़रवरी 26, 2011

अपनी बेरी गदराई है : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक की बालकविता



अपनी बेरी गदराई है


लगा हुआ है इनका ढेर।
ठेले पर बिकते हैं बेर।।

रहते हैं काँटों के संग।
इनके हैं मनमोहक रंग।।

जो हरियल हैं, वे कच्चे हैं।
जो पीले हैं, वे पक्के हैं।।


ये सबके मन को ललचाते।
हम बच्चों को बहुत लुभाते।।

शंकर जी को भोग लगाते।
व्रत में हम बेरों को खाते।। 

ऋतु बसंत की मन भाई है।
अपनी बेरी गदराई है।। 


डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक

गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

मालूम नहीं : रावेंद्रकुमार रवि की बालकहानी


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मालूम नहीं
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रावेंद्रकुमार रवि
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राहुल के पापा फौज में नौकरी करते हैं । आज चार महीने के बाद वे घर आनेवाले हैं । राहुल बेचैनी से उनका इंतज़ार कर रहा है । उसे पापा से बहुत-सारी बातें करनी हैं । उसके मन में उन्हें तीसरी मंजिल पर बनी अंटिया दिखाने की सबसे ज़्यादा इच्छा है ।

अंटिया पर चढ़कर पतंगें देखने में उसे बहुत मज़ा आता है । वह रोज़ाना चुपके से तीन-चार बार अंटिया पर ज़रूर जाता है । अंटिया पर रेलिंग नहीं बनी है और वह अभी छोटा है । इसलिए सब उसे वहाँ जाने पर डाँटते हैं - ‘‘अंटिया पर मत जाना, नहीं तो गिर जाओगे ।’’

यह डाँट उसे बहुत बुरी लगती है ।

वह यह सोचकर बहुत ख़ुश है कि जब वह अंटिया पर ले जाकर पापा को पतंगें दिखाएगा और पतंगों की बातें करेगा, तो पापा ख़ुश हो जाएँगे । पर पापा के आने के बाद दो-तीन दिन तक भी वह उनसे अपनी बात नहीं कह पाता है । उनके लाए हुए खिलौने खेलता रहता है और दूसरी बातें करता रहता है ।

एक दिन जब पापा ख़ुद ही अंटिया पर चढ़ने लगे, तो वह भी दौड़कर वहाँ पहुँच गया । उसने देखा, पापा पतंग की ओर देख रहे हैं । वह ख़ुश हो गया ।

वह पापा से पतंगवाली कोई बात कहना ही चाह रहा था कि पापा ने उसे देख लिया । वे बोले - ‘‘अरे ! तुम यहाँ क्यों आ गए ?’’

उसका चेहरा उतर गया ।

पापा की आवाज़ तेज़ हो गई - ‘‘यहाँ से पतंग देखते होगे ?’’

तब वह सिर झुकाकर धीरे-से बोला - ‘‘नहीं, मैं नीचे से देखता हूँ ।’’

पापा का गुस्सा बढ़ गया । वे बोले - ‘‘मुझे बेवकूफ़ बनाते हो ?’’

‘‘नहीं, पापा !’’

उसके यह कहने के बाद भी पापा उसे एक्टिंग करके समझाने लगे - ‘‘यहाँ आकर पतंगें मत देखा करो । मान लो, पतंग देखते-देखते पीछे की ओर चलते गए और ध्यान नहीं रहा, तो नीचे गिर जाओगे ।’’

राहुल को बहुत बुरा लगा ।

पापा ने उससे कुछ प्रश्नों के उत्तर पूछना शुरू कर दिया ।

‘‘मालूम नहीं ।’’

राहुल को ज़्यादातर प्रश्नों के उत्तर पता हैं, पर उसने हर बार यही उत्तर दिया । वह मन ही मन पापा से गुस्सा जो हो गया है - इतने दिनों के बाद तो आते हैं और ... ... ... ... ... ... ...

कुछ देर बाद पापा ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा - ‘‘चलो,  नीचे चलें ।’’

जीने से उतरते समय पापा ने एक और प्रश्न का उत्तर पूछा - ‘‘बेवकूफ़ का मतलब जानते हो ?’’

वह फिर बोला - ‘‘मालूम नहीं ।’’

तब तक वे नीचे आ गए । पापा उसकी मालूम नहींपर झल्लाते हुए बोले - ‘‘जिन बच्चों को कुछ मालूम नहीं होता है, उन्हीं को बेवकूफ़ कहते हैं । समझ में आया ?’’

राहुल ने कह दिया - ‘‘हाँ ।’’

इसके बाद पापा छत पर इधर-उधर टहलने लगे । कुछ देर बाद उन्हें लगा कि राहुल छत पर नहीं है । वे गली की ओर नीचे झाँककर देखते हैं - राहुल एक पिल्ले के साथ ख़ुश होकर खेल रहा है ।

पापा भी राहुल को हर समय इसी तरह ख़ुश देखना चाहते हैं । वे भी नीचे आ गए और बाज़ार की ओर चल दिए । उन्होंने मुड़कर देखा - राहुल पिल्ले के आगेवाले दोनों पंजे पकड़कर उसे खड़ा कर रहा है । ऐसा लग रहा है कि वह उसे डांस सिखाने जा रहा है ।

अगले दिन छुट्टी है । छुट्टीवाले दिन माँ उसे कुछ ज़्यादा देर तक सो लेने देती हैं ।

जब वह सोकर उठा, तो माँ ने उसे अख़बार देते हुए कहा - ‘‘पापा को दे आओ ।’’

‘‘पापा कहाँ हैं ?’’

‘‘ऊपर अंटिया पर ।’’

यह सुनकर उसे कलवाली बातें याद आने लगीं, पर वह जीने की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा ।

उसने सोचा कि वह पापा को अख़बार देकर तुरंत नीचे चला आएगा ।

छत पर पहुँचते ही उसने देखा कि पापा के साथ और भी दो आदमी अंटिया पर खड़े हैं । वह धीरे-धीरे अंटियावाला जीना भी चढ़ने लगा । ऊपर पहुँचकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । पापा ने उसे गोद में उठाकर उसका गाल अपने गाल से सटा लिया ।

पापा ने शरारत से मुस्कुराते हुए उससे पूछा - ‘‘आपका क्या नाम है ?’’

राहुल भी उन्हीं के अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला - ‘‘मालूम नहीं ।’’

रेलिंग बनानेवाले मिस्त्री और मज़दूर अपना काम शुरू कर चुके हैं । पड़ोस की छत से नन्हे सरदारजी ने ठुमके दे-देकर अपनी पतंग आसमान की ओर बढ़ानी शुरू कर दी है । इस समय वह अंटिया के ठीक ऊपर आकर नाच रही है ।


-- रावेंद्रकुमार रवि

मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011

वाह समोसा : डॉ. मोहम्मद अरशद ख़ान का शिशुगीत

वाह समोसा! वाह समोसा!


मन करता है ले लूँ बोसा -
वाह समोसा! वाह समोसा!

रूप तिकोना कितना सुंदर,
भरा चटपटा आलू अंदर,
गर्म आँच पर पका-पकाकर,
गया तेल में पाला-पोसा!
इसको खाकर निकले मुँह से -
वाह समोसा! वाह समोसा!

डॉ. मोहम्मद अरशद ख़ान

रविवार, फ़रवरी 20, 2011

सचमुच बहुत मज़ा आएगा : सरस चर्चा (२९)

इस बार की सबसे धमाकेदार ख़बर है
पाखी द्वारा भारत के पहले समुद्री-उड़नयान (सी-प्लेन)
में बैठकर हैवलॉक द्वीप की शानदार यात्रा!



आप भी देखिए समुद्र-तल पर उतरता सी-प्लेन,
जिसमें बैठी है अक्षिता पाखी, 
अपनी बहन तन्वी और मम्मी-पापा के साथ!



दूसरी धमाकेदार ख़बर यह है कि 
इस बार का क्रिकेट विश्व कप लविज़ा ही जीतेगी!

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अब आप जो हृदयाकार देख रहे हैं,
उसमें छुपा है चैतन्य की अध्यापिका सुश्री मैलिनी का प्यार!



मेरी आँखें नींद से बोझिल होती हैं,
पर उनमें नींद क्यों नहीं आती?
आइए सुलझाते हैं चलकर लाडली की समस्या!



ये सब उपहार अनुष्का को मिले हैं
या इन सारे उपहारों को मिला है एक बहुत सुंदर उपहार!



बाल-मंदिर में डॉ. बानो सरताज़ की कविता पढ़कर
सचमुच बहुत मज़ा आएगा!



बाल-मंदिर में नंदन के पूर्व संपादक 
जय प्रकाश भारती की भी बहुत बढ़िया कविता छपी है! 
नन्हे-नन्हे, बड़े-बड़े भी, 
मखमल-जैसे पीले फूल. 
गेंदा इनको कहते हैं, 
इनमें कहीं न होता शूल.



रुद्र अपने परिवार के बहुत से लोगों से मिलवा रहा है!
अंशुमन भइया और अंजलि दीदी के साथ!



और अब देखिए बादाम-मिल्क के साथ
अक्षयांशी का यह ख़ूबसूरत स्टाइल!



पिछले सप्ताह डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक की 
यह कविता भी बहुत चर्चित रही!

देख इसे आँगन में, 
शिशु ने बोला औआ-औआ। 
खुश होकर के काँव-काँवकर, 
चिल्लाया है कौआ।। 

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इस बार "सरस पायस" ने अपनी एक और प्यारी बहना 
"सोनमन (मीशू)" से मिलवाया है, 
उसके जन्म-दिवस पर, मेरी इस प्रभाती के साथ! 
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उठ जाओ गुड़िया रानी
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आई है भोर सुहानी,
उठ जाओ गुड़िया रानी!
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और यह भी जान लेते हैं कि 
"सरस पायस" का मन महककर कैसे फूला? 
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महक मेरा मन फूला
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मुझे प्यार है फूलों से, ये 
मुझसे करते प्यार!
झुलाऊँ इनको झूला!
झुलाऊँ इनको झूला!
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 रावेंद्रकुमार रवि 
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भाईचारा हमें सिखाती : रावेंद्रकुमार रवि की नई बालकविता

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 भाईचारा हमें सिखाती 
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मेरी "नयना" इस मैना को,
हलुआ-पूरी रोज़ खिलाती!
सुंदर बहुत पंख हैं इसके,
हम सबको यह बहुत लुभाती!



चोंच उठाकर चलते नल से,
गट-गटकर पी लेती पानी!
फुदक-फुदककर जब यह चलती,
लगती है चिड़ियों की रानी!




अपनी मीठी बोली से यह,
हम सबका मन 
है हर्षाती! 
रहती है समूह में हिलमिल,
भाईचारा 
हमें सिखाती!

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  ♥♥ रावेंद्रकुमार रवि ♥♥
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शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2011

उठ जाओ गुड़िया रानी : रावेंद्रकुमार रवि की नई प्रभाती

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आज "सरस पायस" आपको अपनी एक और प्यारी बहना 
"सोनमन" से मिलवा रहा है, 
उसके जन्म-दिवस पर, मेरी इस प्रभाती के साथ! 
एक साल की सोनमन को 
सब प्यार से "मीशू" कहकर बुलाते हैं!
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उठ जाओ गुड़िया रानी
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आई है भोर सुहानी,
उठ जाओ गुड़िया रानी!

फूलों ने हँसी बिखेरी,
कलियों ने कही कहानी -
उठ जाओ गुड़िया रानी!

आए हैं बादल रिमझिम,
चल रही हवा मस्तानी -
उठ जाओ गुड़िया रानी!

चिड़िया ने गीत सुनाया,
मीठी पपहिरी बजानी -
उठ जाओ गुड़िया रानी!


सुरमय हो जाए दुनिया,
बोलो कुछ ऐसी बानी -
उठ जाओ गुड़िया रानी!

जो खिले तुम्हारे मुख पर,
मन में वो हँसी सजानी -
उठ जाओ गुड़िया रानी!


तुम ही हो सबसे सुंदर,
तुमको यह बात बतानी -
उठ जाओ गुड़िया रानी!

कुछ खेल-खिलौने लेकर,
आई हैं देखो नानी -
उठ जाओ गुड़िया रानी!
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हम सब की तरफ से सोनमन को प्यारी-प्यारी शुभकामनाएँ!
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रावेंद्रकुमार रवि
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♥ चित्रों में हैं : सोनमन (मीशू) ♥
१. सरस पायस के पापा और अपने मामा की गोद में 
२. सरस पायस की दादी और अपनी नानी की गोद में
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मीठे सपनों में खोई है : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत

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♥♥ मीठे सपनों में खोई है ♥♥
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बहुत सलोनी मेरी बहना, 
मीठे सपनों में खोई है! 

सरस हवा का झोंका आकर, 
लोरी इसे सुनाएगा जब! 
धीरे से हँसता इसका मुख, 
सबके मन को भाएगा तब! 
इसकी हँसी देख मन कहता, 
यह तो कभी नहीं रोई है! 

किसी महकते हुए फूल की, 
जब कुछ पंखुरियाँ बरसेंगी! 
इसके माथे पर सजधजकर, 
झिलमिलकर ख़ुशियाँ चमकेंगी!
इसे देखना, पर चुप रहना, 
माँ की गोदी में सोई है! 

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♥♥ रावेंद्रकुमार रवि ♥♥ 
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चित्रों में हैं : तन्वी, पाखी और उनके मम्मी-पापा
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