अंटिया पर चढ़कर पतंगें देखने में उसे बहुत मज़ा आता है । वह रोज़ाना चुपके से तीन-चार बार अंटिया पर ज़रूर जाता है । अंटिया पर रेलिंग नहीं बनी है और वह अभी छोटा है । इसलिए सब उसे वहाँ जाने पर डाँटते हैं - ‘‘अंटिया पर मत जाना, नहीं तो गिर जाओगे ।’’
यह डाँट उसे बहुत बुरी लगती है ।
वह यह सोचकर बहुत ख़ुश है कि जब वह अंटिया पर ले जाकर पापा को पतंगें दिखाएगा और पतंगों की बातें करेगा, तो पापा ख़ुश हो जाएँगे । पर पापा के आने के बाद दो-तीन दिन तक भी वह उनसे अपनी बात नहीं कह पाता है । उनके लाए हुए खिलौने खेलता रहता है और दूसरी बातें करता रहता है ।
एक दिन जब पापा ख़ुद ही अंटिया पर चढ़ने लगे, तो वह भी दौड़कर वहाँ पहुँच गया । उसने देखा, पापा पतंग की ओर देख रहे हैं । वह ख़ुश हो गया ।
वह पापा से पतंगवाली कोई बात कहना ही चाह रहा था कि पापा ने उसे देख लिया । वे बोले - ‘‘अरे ! तुम यहाँ क्यों आ गए ?’’
उसका चेहरा उतर गया ।
पापा की आवाज़ तेज़ हो गई - ‘‘यहाँ से पतंग देखते होगे ?’’
तब वह सिर झुकाकर धीरे-से बोला - ‘‘नहीं, मैं नीचे से देखता हूँ ।’’
पापा का गुस्सा बढ़ गया । वे बोले - ‘‘मुझे बेवकूफ़ बनाते हो ?’’
‘‘नहीं, पापा !’’
उसके यह कहने के बाद भी पापा उसे एक्टिंग करके समझाने लगे - ‘‘यहाँ आकर पतंगें मत देखा करो । मान लो, पतंग देखते-देखते पीछे की ओर चलते गए और ध्यान नहीं रहा, तो नीचे गिर जाओगे ।’’
राहुल को बहुत बुरा लगा ।
पापा ने उससे कुछ प्रश्नों के उत्तर पूछना शुरू कर दिया ।
‘‘मालूम नहीं ।’’
राहुल को ज़्यादातर प्रश्नों के उत्तर पता हैं, पर उसने हर बार यही उत्तर दिया । वह मन ही मन पापा से गुस्सा जो हो गया है - ‘इतने दिनों के बाद तो आते हैं और ... ... ... ... ... ... ...’
कुछ देर बाद पापा ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा - ‘‘चलो, नीचे चलें ।’’
जीने से उतरते समय पापा ने एक और प्रश्न का उत्तर पूछा - ‘‘बेवकूफ़ का मतलब जानते हो ?’’
वह फिर बोला - ‘‘मालूम नहीं ।’’
तब तक वे नीचे आ गए । पापा उसकी ‘मालूम नहीं’ पर झल्लाते हुए बोले - ‘‘जिन बच्चों को कुछ मालूम नहीं होता है, उन्हीं को बेवकूफ़ कहते हैं । समझ में आया ?’’
राहुल ने कह दिया - ‘‘हाँ ।’’
इसके बाद पापा छत पर इधर-उधर टहलने लगे । कुछ देर बाद उन्हें लगा कि राहुल छत पर नहीं है । वे गली की ओर नीचे झाँककर देखते हैं - राहुल एक पिल्ले के साथ ख़ुश होकर खेल रहा है ।
पापा भी राहुल को हर समय इसी तरह ख़ुश देखना चाहते हैं । वे भी नीचे आ गए और बाज़ार की ओर चल दिए । उन्होंने मुड़कर देखा - राहुल पिल्ले के आगेवाले दोनों पंजे पकड़कर उसे खड़ा कर रहा है । ऐसा लग रहा है कि वह उसे डांस सिखाने जा रहा है ।
अगले दिन छुट्टी है । छुट्टीवाले दिन माँ उसे कुछ ज़्यादा देर तक सो लेने देती हैं ।
जब वह सोकर उठा, तो माँ ने उसे अख़बार देते हुए कहा - ‘‘पापा को दे आओ ।’’
‘‘पापा कहाँ हैं ?’’
‘‘ऊपर अंटिया पर ।’’
यह सुनकर उसे कलवाली बातें याद आने लगीं, पर वह जीने की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा ।
उसने सोचा कि वह पापा को अख़बार देकर तुरंत नीचे चला आएगा ।
छत पर पहुँचते ही उसने देखा कि पापा के साथ और भी दो आदमी अंटिया पर खड़े हैं । वह धीरे-धीरे अंटियावाला जीना भी चढ़ने लगा । ऊपर पहुँचकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा । पापा ने उसे गोद में उठाकर उसका गाल अपने गाल से सटा लिया ।
पापा ने शरारत से मुस्कुराते हुए उससे पूछा - ‘‘आपका क्या नाम है ?’’
राहुल भी उन्हीं के अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला - ‘‘मालूम नहीं ।’’
रेलिंग बनानेवाले मिस्त्री और मज़दूर अपना काम शुरू कर चुके हैं । पड़ोस की छत से नन्हे सरदारजी ने ठुमके दे-देकर अपनी पतंग आसमान की ओर बढ़ानी शुरू कर दी है । इस समय वह अंटिया के ठीक ऊपर आकर नाच रही है ।