"सरस पायस" पर सभी अतिथियों का हार्दिक स्वागत है!

गुरुवार, अक्तूबर 28, 2010

लड्डू सबके मन को भाते : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" की शिशुकविता

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लड्डू सबके मन को भाते!
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लड्डू हैं ये प्यारे-प्यारे,
नारंगी-से कितने सारे!

बच्चे इनको जमकर खाते,
लड्डू सबके मन को भाते!

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प्रांजल का भी मन ललचाया,
लेकिन उसने एक उठाया!

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अब प्राची ने मन में ठाना,
उसको हैं दो लड्डू खाना!

तुम भी खाओ, हम भी खाएँ,
लड्डू खाकर मौज़ मनाएँ!
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
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कविता : मयंक जी की लेखनी से
चित्र : मयंक जी के कैमरे से
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मंगलवार, अक्तूबर 26, 2010

अभ्यास : उत्सव पटेल और राजेश उत्साही का फ़ोटो-फ़ीचर

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अभ्यास
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मेरा फ़ोटो खींच रहे हो? रुको, मैं अपने दोस्‍त को भी बुला लाता हूँ।
हम लकड़ी नहीं, हड्डी खाने की प्रेक्टिस कर रहे हैं।
मम्‍मी ने कहा है कि अच्‍छी तरह से चबाना चाहिए।

ओए, लड़ क्‍यों रहा है? यह सचमुच की हड्डी नहीं है।
चलो जी, प्रेक्टिस ख़त्‍म। अब हम जा रहे हैं, आप भी जाइए।
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छाया : उत्सव पटेल, शब्द : राजेश उत्साही
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रविवार, अक्तूबर 24, 2010

जन्म-दिन की मनमोहक मुस्कान : सरस चर्चा (18)

इस बार की सरस चर्चा कुछ सरस मुस्कानों से शुरू करते हैं!

रिमझिम का चेहरा बता रहा है कि
जन्म-दिन मनाने की ख़ुशी कितनी मनमोहक होती है!


इस बार मुझे एक बहुत मज़ेदार दोस्त मिली है!
इसे सब प्यार से बुलबुल कहकर बुलाते हैं!
ज़रा अनुमान लगाकर देखिए कि
यह कौन-से ओलंपिक की तैयारी कर रही है!


अनुष्का को देखिए : नए परिधान में कितनी सुंदर लग रही है!
वह डाँडिया रास रचाने जा रही है! क्या आप भी चलेंगे?


एक बात और बताऊँ? अन्नप्राशन के बाद अनुष्का ने क्या कहा था?
कहा था : मैया मोरी, मैं नहिं माखन खायो!


चैतन्य करेलों को चूहा बनाकर कितना ख़ुश हो रहा है!


माधव के संजीव अंकल दिखा रहे हैं
लाहुलस्पीती (हिमाचल प्रदेश) के काज़ा गाँव के कुछ मनोहारी दृश्य!


नन्हे सुमन पर डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक की संदेश देती कविता पढ़िए -
नीला नभ इनका संसार। तोते उड़ते पंख पसार।।

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मेरी चुनरिया मलमल की, फिर क्यों न फिरूँ झलकी-झलकी!
नन्ही परी इशिता नृत्य करके अपना पसंदीदा गीत सुना रही है!


कितनी मासूम लग रही है हमारी बेटी?
पूछ रहे हैं पंखुरी के पापा!


पाखी को याद आ गईं पिछले साल की बातें!
जब पुजारी जी ने उसे एक नहीं दो-दो चुनरियाँ उढ़ाकर
गले में माला डाली और ढेर सारा प्रसाद दिया!


चुलबुल के द्वारा बनाया गया सुंदर चित्र देखिए!
इसमें चुलबुल की माँ कपड़े धो रही हैं
और चुलबुल घूमने जाने को बेक़रार है!


आराम के इस मामले को भी देख लीजिए!


यह भी देखिए कि इस आरामतलब ने इस बार क्या बनाया है!


"सरस पायस" इस बार मिलवा रहा है आपको एक नन्हे ग़ज़लकार से!

पंख नहीं होते हैं फिर भी,
आसमान की परी पतंग।

सृजन पांडेय


- और अंत में पढ़िए मेरी एक मीठी कविता -

मैं हूँ मधुमक्खी मस्तानी,
सदा करूँ अपनी मनमानी!
फूल-फूल पर फिरूँ महकती,
बनकर मैं फूलों की रानी!

शहर वाली मधुमक्खी का शहद स्वादिष्ट

रावेंद्रकुमार रवि
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शुक्रवार, अक्तूबर 22, 2010

मैं हूँ मधुमक्खी मस्तानी : रावेंद्रकुमार रवि की बालकविता

फूल मुझे अच्छे लगते हैं

शहर वाली मधुमक्खी का शहद स्वादिष्ट

मैं हूँ मधुमक्खी मस्तानी,
सदा करूँ अपनी मनमानी!
फूल-फूल पर फिरूँ महकती,
बनकर मैं फूलों की रानी!

जो मुझको है नहीं सताता,
उसको गुन-गुन गीत सुनाऊँ!
किंतु छेड़ता है जो मुझको,
उसके दोनों गाल सुजाऊँ!

फूल मुझे अच्छे लगते हैं,
इनमें मेरे प्राण सरसते!
मेरा मन हर्षित होता है,
जब भी ये खिल-खिलकर हँसते!


रावेंद्रकुमार रवि
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बुधवार, अक्तूबर 20, 2010

आसमान की परी पतंग : सृजन की ग़ज़ल, सृष्टि के चित्र

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आसमान की परी पतंग
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सर-सर करती उड़ी पतंग,
फर-फर करती उड़ी पतंग।

सर-सर करती, फर-फर करती,
आसमान में उड़ी पतंग।

नीली, पीली, हरी, गुलाबी,
सब रंगों से भरी पतंग।

कई पतंगें काट-काटकर,
सीना ताने खड़ी पतंग।

पंख नहीं होते हैं फिर भी,
आसमान की परी पतंग।
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चित्रकार : सृष्टि पांडेय
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ग़ज़लकार : सृजन पांडेय
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सोमवार, अक्तूबर 18, 2010

अपलम-चपलम : डॉ. नागेश पांडेय संजय की नई पुस्तक

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श्री गांधी पुस्तकालय प्रकाशन, शाहजहाँपुर (उ.प्र.)
से प्रकाशित डॉ. नागेश पांडेय संजय की नई पुस्तक
नन्हे दोस्तों के लिए कुछ प्यारी-प्यारी कविताएँ लेकर आई है!
कविताओं के लिए चित्रांकन डॉ. ममता रंजन ने किया है तथा
रंग-रँगीले आवरण पृष्ठ को अरविंद राज ने सजाया है!
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- आइए अब पढ़ते हैं इस पुस्तक की ये चार शिशुकविताएँ -
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गड़बड़-सड़बड़
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हरा रंग होता हाथी का,
काँव-काँव वह करता।
हरी मिर्च उसको भाती है,
उसको ख़ूब कुतरता।

पंख बड़े होते भालू के,
मिनटों में उड़ जाता।
आसमान में ख़ूब मछलियाँ,
पकड़-पकड़कर खाता।

बड़ी चोंच होती चूहे की,
भौं-भौं-भौं-भौं करता।
साथ खेलता बिल्ली के वह,
पर चुहिया से डरता।

लंबी सूँड़ गाय की होती,
चुपके से वह आती।
चौके में घुस दूध-मलाई,
झटपट चट कर जाती।
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डॉ. नागेश पांडेय संजय
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इस संकलन की कविताएँ तो बढ़िया हैं ही,
पर उनसे भी बढ़िया है : इस पुस्तक का मूल्य : मात्र पाँच रुपए!
आवरण सहित २० पृष्ठों का इतना कम मूल्य
आजकल तो कहीं नज़र ही नहीं आता!
पुस्तकें मँगाते समय "सरस पायस" का उल्लेख करने पर
"सरस पायस" के पाठकों के लिए इसमें भी छूट है!
सौ रुपए की पुस्तकें क्रय करने पर पाँच पुस्तकें मुफ़्त में भेजी जाएँगी!
डाकखर्च भी आपको नहीं देना पड़ेगा!
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- पुस्तकें मँगाने के लिए संपर्क-सूत्र हैं -

डॉ. नागेश पांडेय संजय
सुभाषनगर (निकट : रेलवे कॉलोनी),
शाहजहाँपुर (उ.प्र.) - २४२००१.

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dr.nagesh.pandey.sanjay@gmail.com
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शनिवार, अक्तूबर 16, 2010

आज बनी हैं नवदुर्गाएँ ब्लॉगजगत की नन्ही परियाँ : सरस चर्चा (17)

अनुष्का तो घंटे और शंख की ध्वनि के बीच
गणेश-मंत्र का जाप कर रही है! आप भी कीजिए -

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।


विशेष तारीख़ १०.१०.१० को पंखुरी ने मनाया अपने पिताजी का जन्म-दिन!


ऐसा क्या किया उसने कि इशिता बड़ी हो गई!


लविज़ा के आसपास तो सँभलकर ही जाना!
गांधी जी की लाठी तन पर नहीं मन पर लगती है!

Laviza as Gandhi Ji

और यह देखिए! फूलों के साथ मुस्कराने के बाद
अक्षिता पाखी ने कौन-सा शतक मारा है?


पता नहीं आजकल क्या कर रही है,
चिन्मयी रिमझिम अपने शिल्पगृह में!


बाद में पता लगा : १५ अक्टूबर को एक ख़ास दिन था!
रिमझिम तो अपना और अपने दादाजी का जन्म-दिन मना रही थी!


ओजस्वी रुनझुन तो इस समय मेरी गोद में है!
आप समझ सकते हैं कि वह मुझसे क्या कह रही है!


चुलबुल अपनी बगिया में ढूँढ रही है एक सुंदर-सा फूल!


और अब मान्या से मिलते हैं,
जो अभी-अभी पूजा-अर्चना करके आ रही है!




















आइए हम सब भी इनकी पूजा-अर्चना करते हैं : प्यार से!

रावेंद्रकुमार रवि

गुरुवार, अक्तूबर 14, 2010

चलता बहुत मटककर : रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत

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चलता बहुत मटककर
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टिक-टिक-टिक-टिक, टिक-टिक-टिक-टिक,
चले दौड़कर घोड़ा टिक-टिक!


मज़ेदार है सुंदर घोड़ा,
चलता बहुत मटककर!
रोज़ सुबह रसगुल्ले खाता,
मट्ठा पीता जमकर!

कभी नहीं यह करता चिक-चिक,
चले दौड़कर घोड़ा टिक-टिक!


जब चलता है दो पैरों पर,
कंधे पर बैठाता है!
जभी लेट जाता यह घोड़ा,
गद्दे-जैसा भाता है!

हँसता रहता, करे न झिक-झिक,
चले दौड़कर घोड़ा टिक-टिक!




यह गीत मैंने अपने और आदित्य के पिछले जन्म-दिन (२ मई २०१०) पर रचा था!
तब इसकी दूसरी स्थाई पंक्ति यह थी : चले आदि का घोड़ा टिक-टिक!
इसको प्रकाशित करने के बारे में सोचता ही रहा,
क्योंकि दूसरे पद की बीचवाली पंक्तियाँ कुछ जम नहीं रही थीं!
चारों पैरों पर जब चलता, पीठी पर बैठाता है!
२० जून २०१० को अचानक मुझे पाखी का घोड़ा नज़र आया!
यह घोड़ा भी मुझे बहुत अच्छा लगा,
क्योंकि इसने लेटकर मेरी समस्या का समाधान कर दिया!
उसके बाद चौथा और पाँचवा चित्र भेजकर
रंजन मोहनोत जी और कृष्णकुमार यादव जी ने
मेरी मदद करके इस सरसगीत की शोभा बढ़ा दी!
मुझे पूरा भरोसा है कि आदि और पाखी के साथ-साथ
दुनिया के सभी नन्हे दोस्त इस गीत को गाकर ख़ुश हो सकेंगे!
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रावेंद्रकुमार रवि
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मंगलवार, अक्तूबर 12, 2010

मुझसे कभी न तुम घबराना : प्रियंका गुप्ता का नया बालगीत

मुझसे कभी न तुम घबराना


चिड़िया रानी, चिड़िया रानी,
मेरे आँगन में तुम आना।

अपने नन्हे-मुन्ने मुँह से,
मुझको मीठा गीत सुनाना।
साथ तुम्हारे मिलकर मैं भी,
गाऊँगी यह गीत सुहाना।
चिड़िया रानी ... ... .

राह तुम्हारी देखा करती,
मुझसे कभी न तुम घबराना।
फुदक-फुदककर आते रहना,
मैं डालूँगी तुमको दाना।
चिड़िया रानी ... ... .

सोचा करती तुम्हें देखकर,
मैं भी उड़कर पर फैलाना।
इधर-उधर की सैर कराने,
साथ मुझे भी लेती जाना।
चिड़िया रानी ... ... .

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प्रियंका गुप्ता
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चित्र : गूगल खोज से साभार
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