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शनिवार, नवंबर 06, 2010

सूखें तो किशमिश बन जाते : डॉ. नागेश पांडेय संजय की बालग़ज़ल

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सूखें तो किशमिश बन जाते
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मधुर-मधुर प्यारे अंगूर,
गोल-गोल न्यारे अंगूर।


कभी नहीं जी भरता इनसे,
हों कितने सारे अंगूर।

सूखें तो किशमिश बन जाते,
रस के चटखारे अंगूर।


बाबा के चश्मे से लगते,
बिल्कुल गुब्बारे अंगूर।

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डॉ. नागेश पांडेय संजय
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बुधवार, अक्टूबर 20, 2010

आसमान की परी पतंग : सृजन की ग़ज़ल, सृष्टि के चित्र

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आसमान की परी पतंग
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सर-सर करती उड़ी पतंग,
फर-फर करती उड़ी पतंग।

सर-सर करती, फर-फर करती,
आसमान में उड़ी पतंग।

नीली, पीली, हरी, गुलाबी,
सब रंगों से भरी पतंग।

कई पतंगें काट-काटकर,
सीना ताने खड़ी पतंग।

पंख नहीं होते हैं फिर भी,
आसमान की परी पतंग।
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चित्रकार : सृष्टि पांडेय
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ग़ज़लकार : सृजन पांडेय
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