"सरस पायस" पर सभी अतिथियों का हार्दिक स्वागत है!

गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

हो... हो... होली है : अरविंद राज का एक बालगीत

हो... हो... होली है !


मन में तरंग है,

तन में उमंग है ।

धरती रंगीली है,

अंबर सतरंग है ।

रंगों में रँगी हुई

मस्तों की टोली है ।

होली है...

हो... हो... होली है !

आज नहीं दिल में

है कोई मलाल ।

छेड़ रहे सब मिलकर

खुशियों की ताल ।

रंगों में आज भली

प्रेम-भंग घोली है ।

होली है...

हो... हो... होली है !

रंगों की धारों से

कोई ना बच पाया ।

फागुन के मौसम में

हर कोई पगलाया ।

अंबुआ पे बौराई

कोयलिया बोली है --

होली है...

हो... हो... होली है !
विं रा

कमल-कुंज, अनामिका डिज़ायनर्स एंड प्रिंटर्स,

हुसैनपुरा, बड़ी बिसरात रोड, शाहजहाँपुर (उ.प्र.) - 242 001.

बुधवार, फ़रवरी 24, 2010

सेब निराला : संगीता स्वरूप की एक शिशु कविता

सेब निराला
लाल-लाल है सेब निराला,
ख़ुश होता हर खानेवाला ।
जो है इसको प्रतिदिन खाता,
वह रोगों को दूर भगाता ।




संगीता स्वरूप

रविवार, फ़रवरी 21, 2010

श्रम करने से मिले सफलता : डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक का गीत

के लिए "सरस पायस" को आशीष के रूप में मिला
का बालगीत इतना अच्छा है
कि मैं उसे पोस्ट के रूप में प्रकाशित करने से
अपने आप को रोक नहीं पाया!

श्रम करने से मिले सफलता
[22022009273.jpg]

खेल-कूद में रहे रात-दिन,
अब पढ़ना मजबूरी है ।
सुस्ती-मस्ती छोड़,
परीक्षा देना बहुत जरूरी है ।।

मात-पिता, विज्ञान-गणित हैं,
ध्यान इन्हीं का करना है ।
हिंदी की बिंदी को,
माता के माथे पर धरना है ।।

देव-तुल्य जो अन्य विषय हैं,
उनके भी सब काम करेंगे ।
कर लेंगे, उत्तीर्ण परीक्षा,
अपना ऊँचा नाम करेंगे ।।

श्रम करने से मिले सफलता,
कविता यही सिखाती है ।
रवि की पहली किरण हमेशा,
नया सवेरा लाती है ।।


शनिवार, फ़रवरी 20, 2010

परीक्षा सिर पर आई : रावेंद्रकुमार रवि का एक बालगीत


परीक्षा सिर पर आई
खेल-कूद अब छोड़ें कुछ दिन,
आओ, जमकर करें पढ़ाई!
परीक्षा सिर पर आई!!

टीवी-सीडी ख़ूब देख ली,
ख़ूब किया है सैर-सपाटा!
अब तो केवल देखें पुस्तक,
छोड़ें सुस्ती की अँगड़ाई!
परीक्षा सिर पर आई!!

गणित हमारी माता हैं अब,
और पिता विज्ञान हमारे!
इनकी सेवा अब भी कर लें,
होगी जग में नहीं हँसाई!
परीक्षा सिर पर आई!!

हिंदी को मत समझें बिंदी,
यह सूरज-सा "भाग" जगाए!
अँगरेज़ी को भी जो समझे,
दुनिया-भर में नाम कमाए!
इनकी भी सुधि ले लें भाई!
परीक्षा सिर पर आई!!

सभी विषय हैं देवों-जैसे,
इनके ही गुणगान करें बस!
अपनी मेहनत के इन पर अब,
आओ फूल चढ़ाएँ भाई!
परीक्षा सिर पर आई!!

यदि अब भी ऐसा कर लें तो,
सभी सफलता पा जाएँगे!
खुशियाँ आ जाएँगी घर पर,
जीवन होगा ना दुखदाई!
परीक्षा सिर पर आई!!

रावेंद्रकुमार रवि
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, चारुबेटा,
खटीमा, ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड (भारत)

4 comments:


डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
खेल-कूद में रहे रात-दिन, अब पढ़ना मजबूरी है। सुस्ती - मस्ती छोड़, परीक्षा देना बड़ा जरूरी है।। मात-पिता,विज्ञान,गणित है, ध्यान इन्हीं का करना है। हिन्दी की बिन्दी को, माता के माथे पर धरना है।। देव-तुल्य जो अन्य विषय है, उनके भी सब काम करेगें। कर लेंगें, उत्तीर्ण परीक्षा, अपना ऊँचा नाम करेंगे।। श्रम से साध्य सभी कुछ होता, कविता यही सिखाती है। रवि की पहली किरण हमेशा, नया सवेरा लाती है।।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…
अल्प समय में चिट्ठाजगत के एकमात्र काव्य-टिप्पणीकार के रूप में उभरकर उदित हुए मयंक का नमन करते हुए मैं उनकी इस कविता को शीघ्र ही "सरस पायस" पर प्रकाशित करने जा रहा हूँ! आशा है कि मयंक की आशीष रूपी विभा इसी तरह "सरस पायस" को सुभाषित करती रहेगी!

creativekona ने कहा…
Ravi ji , Bahut achchha balgeet likha hai apne.is samaya to bachchon ko padhai karana vakayee bahut jarooree hai.ummeed hai age bhee aise hee achchhe geet padhane ko milenge.shubhkamnayen Hemant Kumar

प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर ने कहा…
बहुत बढ़िया बाल गीत !!!! अच्छा लगा!!!

सोमवार, फ़रवरी 15, 2010

मान्या की दादी का एक बालगीत : पीछे-पीछे सब डिब्बों से

गिरिजा कुलश्रेष्ठ
पीछे-पीछे सब डिब्बों से
















नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!
उसे पकड़ने दौड़ पड़ा है
पीछे-पीछे सब घर!

चश्मा रखकर दौड़ीं दादी,
पुस्तक रखकर दादा,
हड़बड़-गड़बड़ पापा-मम्मी,
काम छोड़कर आधा,
चकराए चाचा चिल्लाए --
रोको, अरे, सँभलकर!
नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!

सबको पीछे देख, और
वह भागी तेज़ किलककर!
फूट पड़े दूधिया हँसी के
कितने प्यारे निर्झर!
उठा लिया गोदी में तो,
फिर उतरी मचल-मचलकर!
नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!

चटपट-चटपट गई किचन में,
सरपट-सरपट आँगन!
पीछे-पीछे सब डिब्बों से,
मान्या हो गयी इंजन!
चलती जाती ऐसे, जैसे --
घूमेगी दुनिया-भर!
नन्ही मान्या घुटनों-घुटनों
चलती किलक-किलककर!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मोहल्ला - कोटावाला, ख़ारे कुएँ के पास,
ग्वालियर, मध्य प्रदेश (भारत)

3 comments:





purnima ने कहा…
bachpan ki shrarte sabko pareshan karne vali hoti he. aapki kavita kafi sundar he. रावेंद्रकुमार ji




purnima ने कहा…
bachpan ki shrarte sabko pareshan karne vali hoti he. aapki kavita kafi sundar he. रावेंद्रकुमार ji




Prem Farrukhabadi ने कहा…
रचना बहुत प्यारी है .बधाई मैंने भी कोशिश की है देखे नन्ही मान्या घुटनों के बल चलने लगी किलक कर दादा बोले देखे रहना कही चली न जाए निकल कर सोच समझ न उस को कोई कहीं भी जा सकती है हाथ में उस के जो लग गया उस को खा सकती है

मंगलवार, फ़रवरी 09, 2010

कह रहीं बालियाँ गेहूँ की : डॉ॰ नागेश पांडेय संजय की एक बालकविता

कह रहीं बालियाँ गेहूँ की
मधुर कान में काली कोयल गाए मस्त मल्हार!
बाँट रहे हैं फूल सभी को ख़ुशबू का उपहार!
पेड़ों ने पहनी है कोमल-नई-मनोहर वर्दी!
भीनी-भीनी धूप निकलने लगी कम हुई सर्दी!
लदे बौर से पेड़ आम के मस्त हवा संग झूमें!
सुध-बुध छोड़ तितलियाँ सरसों पर इठलाकर घूमें!
नई बालियाँ गेहूँ की कह रहीं लगाकर ठुमके -
‘उछलो, कूदो, थिरको, नाचो, आए दिन फागुन के!’
डॉ॰ नागेश पांडेय संजय

5 comments:


हरि ने कहा…
अति सुंदर बालगीत। हमें भी फाल्‍गुन की सुध आई। बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
सुन्दर चित्रों के माध्यम से, रंग बिखेरे होली के। फागुन आया, संग में लाया, मधुर तराने होली के। सुन्दर बाल गीत में, सुन्दर-सुन्दर रंग भरे हैं। वाह-वाह लिखने को, सतरंगी अक्षर उभरे हैं।।

seema gupta ने कहा…
" jitne sundr prakrtik chitr, utne hi sundr shabd....dil ko bha gye...behd mnmohak" regards

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…
ब्लॉगर creativekona ने कहा… भाई रावेन्द्र जी , डा.देशबंधु जी के साथ ही डा .नागेश जी का बालगीत ,इनके साथ ही आपके द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ्स की जुगलबंदी ....कुल मिलाकर मन खुश हो गया .आपके कवि,लेखक से तो परिचित था .आज आपके अन्दर बैठे डिजाइनर से भी परिचय कर लिया .बहुत बहुत बधाई आपको एवं डा.देशबंधु और डा.नागेश जी को . हेमंत कुमार

अरविंद राज ने कहा…
होली के प्राकृतिक रंगों से रंगी इस कविता ने हृदय को सराबोर कर दिया। उत्तम रचना के प्रकाशन हेतु सरस पायस को बधायी।
Related Posts with Thumbnails

"सरस पायस" पर प्रकाशित रचनाएँ ई-मेल द्वारा पढ़ने के लिए

नीचे बने आयत में अपना ई-मेल पता भरकर

Subscribe पर क्लिक् कीजिए

प्रेषक : FeedBurner

नियमावली : कोई भी भेज सकता है, "सरस पायस" पर प्रकाशनार्थ रचनाएँ!

"सरस पायस" के अनुरूप बनाने के लिए प्रकाशनार्थ स्वीकृत रचनाओं में आवश्यक संपादन किया जा सकता है। रचना का शीर्षक भी बदला जा सकता है। ये परिवर्तन समूह : "आओ, मन का गीत रचें" के माध्यम से भी किए जाते हैं!

प्रकाशित/प्रकाश्य रचना की सूचना अविलंब संबंधित ईमेल पते पर भेज दी जाती है।

मानक वर्तनी का ध्यान रखकर यूनिकोड लिपि (देवनागरी) में टंकित, पूर्णत: मौलिक, स्वसृजित, अप्रकाशित, अप्रसारित, संबंधित फ़ोटो/चित्रयुक्त व अन्यत्र विचाराधीन नहीं रचनाओं को प्रकाशन में प्राथमिकता दी जाती है।

रचनाकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे "सरस पायस" पर प्रकाशनार्थ भेजी गई रचना को प्रकाशन से पूर्व या पश्चात अपने ब्लॉग पर प्रकाशित न करें और अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित न करवाएँ! अन्यथा की स्थिति में रचना का प्रकाशन रोका जा सकता है और प्रकाशित रचना को हटाया जा सकता है!

पूर्व प्रकाशित रचनाएँ पसंद आने पर ही मँगाई जाती हैं!

"सरस पायस" बच्चों के लिए अंतरजाल पर प्रकाशित पूर्णत: अव्यावसायिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका है। इस पर रचना प्रकाशन के लिए कोई धनराशि ली या दी नहीं जाती है।

अन्य किसी भी बात के लिए सीधे "सरस पायस" के संपादक से संपर्क किया जा सकता है।

आवृत्ति