सोमवार, नवंबर 07, 2011
रावेंद्रकुमार रवि की बालकहानी : सुंदर कौन?
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रचनाकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे "सरस पायस" पर प्रकाशनार्थ भेजी गई रचना को प्रकाशन से पूर्व या पश्चात अपने ब्लॉग पर प्रकाशित न करें और अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित न करवाएँ! अन्यथा की स्थिति में रचना का प्रकाशन रोका जा सकता है और प्रकाशित रचना को हटाया जा सकता है!
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"सरस पायस" बच्चों के लिए अंतरजाल पर प्रकाशित पूर्णत: अव्यावसायिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका है। इस पर रचना प्रकाशन के लिए कोई धनराशि ली या दी नहीं जाती है।
अन्य किसी भी बात के लिए सीधे "सरस पायस" के संपादक से संपर्क किया जा सकता है।
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12 टिप्पणियां:
बाल मनोविज्ञान से संबंधित समस्या को सुलझाती सहज-सरल कहानी। बहुत बढि़या।
अभिनव सृजन पर जिस कहानी को जाकिर अली रजनीश बता रहे थे कि यह कहानी मेरी कहानी की कॉपी करके लिखी गई है। उसको आपने प्रमाण के साथ सरस पायस पर प्रकाशित करके सारी स्थिति साफ कर दी है!
6 सितम्बर 1987 को तो जाकिर भाई कक्षा 4 या 5 के छात्र रहे होंगे।
जाकिर भाई ने अभिनव सृजन से अपनी सारी टिप्पणियाँ हटा दी हैं यद्यपि उनकी कापी मेरे पास सुरक्षित है ः इससे यह सिद्ध हो गया कि जो कुछ वह रहे थे सब मिथ्या था और अब उनके पास सिवाय विड्रा करने के कोई चारा भी न था.
...मजेदार बात यह है कि खुद जाकिर भाई की कहानी रवि जी की कहानी के 9साल बाद बाल भारती के सितम्बर 1996 अंक में सच्ची सुन्दरता शीर्षक से प्रकाशित हुई है.
रावेन्द्र जी, इस पूरे प्रकरण में कुछ ऐसा षणयंत्र रचा गया था कि उसमें आपका नाम अनावश्यक रूप से शामिल हो गया, जबकि मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी। इस अनावश्यक विवाद के कारण आपको जो तकलीफ पहुंची है, मैं इसके लिए खुले मन से खेद व्यक्त करता हूं। मैंने इस पूरे प्रकरण की असलियत अपने ब्लॉग पर प्रकाशित की है। आप व अन्य साथी इस सम्बंध में पाण्डे जी समस्त कारगुजारी को यहां पर
देख सकते हैं।
baal manovigyan ko darpan mein bakbhubi uta hai aapne kahani ke madhayam se.. bahut sundar saarthak prastuti..
Haardik shubhkamnayen
इस पूरे विवाद पर सम्मानित रचनाकार डॉ0 मोहम्मद अरशद खान की विस्तृत टिप्पणी आ गयी है, जिसे पढ़कर यह स्पष्ट हो जाता है कि इसे किस प्रकार गढ़ा गया और बढ़ाया गया। डॉ0 अरशद खान की टिप्पणी एवं इस सम्बंध में अन्य सभी सवालों के जवाब यहाँ पर उपलब्ध हैं। उपरोक्त लिंक में चूंकि असावधानीवश सिर्फ ब्लॉग को लिंकित किया गया था, इसलिए सम्बंधित पोस्ट के लिंक वाली यह टिप्पणी यहाँ पर दुबारा करनी पड़ रही है।
रजनीश जी की कहानी सच्ची सुंदरता मेरी कहानी के साथ यहाँ पढ़ी जा सकती है!
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सोनाली और रूपाली जुड़वाँ बहनें हैं। सब प्यार से उन्हें सोना-रूपा कहकर पुकारते हैं। दोनों ही पढ़ने में बहुत तेज़ हैं और लगभग हर काम में आगे रहती हैं। अपने नामों की ही तरह वे दोनों सुंदर भी बहुत हैं।
वे एक-दूसरे को बहुत चाहती हैं। हमेशा हिल-मिलकर रहती हैं। यदि कभी-कभार किसी बात पर झगड़ा हो भी जाता है, तो जल्दी ही मेल भी हो जाता है। वे एक-दूसरे के बिना रह ही नहीं पाती हैं।
एक बार की बात है - दोनों बहनों ने एक साथ बैठकर फ़ोटो खिंचवाया। जब फ़ोटो बनकर आया, तो वे दोनों उसे देखने लगीं।
देखते-देखते सोना बोल पड़ी - ‘‘तेरा फ़ोटो अच्छा नहीं आया !’’
‘‘क्यों ? क्या कमी है इसमें ?’’ - झट से रूपा ने भी पूछ लिया।
‘‘ख़ुद ही देख, तेरी आँखें कैसी मिची जा रही हैं !’’ - सोना ने थोड़ा-सा मुँह बनाते हुए कहा।
इस पर रूपा और ज़्यादा मुँह टेढ़ा करके बोली - ‘‘तो तेरा फ़ोटो कौन-सा अच्छा आया है ? देख, अपनी नाक तो देख। कैसी पकौड़े की तरह फूली जा रही है !’’
‘‘चल-चल ! मेरा फ़ोटो ज़्यादा सुंदर है !’’ - सोना ने चिढ़कर कहा, तो रूपा ने फ़ोटो उसके हाथ से छीनकर उसे धक्का दे दिया।
इसके बाद काट खाने जैसे अंदाज़ में सोना से बोली - ‘‘हट ! मेरा फ़ोटो ज़्यादा सुंदर है !’’
एकदम बात इतनी बढ़ गई कि हाथापाई तक की नौबत आ गई। यदि माँ बीच में न आ जातीं, तो शायद लड़ाई हो ही जाती।
फ़ोटो की तो धज्जियाँ उड़ गईं। उसके टुकड़े कमरे में इधर-उधर बिखर गए। सोना-रूपा में बोलचाल बंद हो गई।
ऐसा पहली बार हुआ था। ख़ुद उन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे दोनों आपस में इतनी बुरी तरह लड़ने के लिए कैसे तैयार हो गईं !
माँ ने सोचा कि अभी फिर मिलकर खेलने लगेंगी। ऐसा तो हमेशा होता है। लेकिन जब शाम तक वे दोनों एक-दूसरे से नहीं बोलीं, तो माँ को बहुत हैरानी हुई। शाम को उन्होंने उनके पापा को सारी बात बताई।
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