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मेरी "नयना" इस मैना को,
हलुआ-पूरी रोज़ खिलाती!
सुंदर बहुत पंख हैं इसके,
हम सबको यह बहुत लुभाती!
चोंच उठाकर चलते नल से,
गट-गटकर पी लेती पानी!
फुदक-फुदककर जब यह चलती,
लगती है चिड़ियों की रानी!
अपनी मीठी बोली से यह,
हम सबका मन है हर्षाती!
रहती है समूह में हिलमिल,
भाईचारा हमें सिखाती!
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♥♥ रावेंद्रकुमार रवि ♥♥
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9 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया!
मगर यह तो सभी से बहुत लड़ती-झगड़ती है।
अलग रंग ढंग की कविता । वाह ।
नया मुखपृष्ठ बहुत सुंदर । बधाई हो बधाई ।
अंकल , हमेशा की तरह प्यारी रचना के लिए बधाई ।
सुन्दर बाल कविता। आभार।
हमेशा की तरह प्यारी रचना| धन्यवाद|
सुन्दर कविता.......
सुन्दर कविता ..
पहले भी कई बार कहा है.. आज भी कहता हूँ.. गीत के साथ साथ आपकी प्रजेंटेशन भी बहुत लाजवाब होती है..
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