गुरुवार, जनवरी 14, 2010
एक चील जो चाँद पे अंडे देती थी ... ... . : सुशील शुक्ल की एक ताज़ा बालकविता
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8 टिप्पणियां:
कविता अस्पश्ट सी पढी जा सकी पूरी समझ नहीं आयी। इस लिये क्या कहूँ । मकर संक्राँति की बहुत बहुत शुभकामनायें
हम तो यही कहेगे बहुत सुंदर है जी आप की यह कविता, इसे पढने के लिये चित्र को बडा करे
"सुशील की कविताओं में जो ताजगी व अनूठापन होता है,
वह इस कविता में भी है ।"
--
गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मोहल्ला - कोटा वाला, खारे कुएँ के पास,
ग्वालियर, मध्य प्रदेश (भारत)
--
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ई - 10, शंकरनगर,
बी.डी.ए. कॉलोनी, शिवाजीनगर,
भोपाल, म. प्र. (भारत) - 462016
सुनील शुक्ल जी को बधाई!
सरस पायस पर इसको सजाने के लिए रवि जी को धन्यवाद!
ek umda abhivyakti ke sath bahut hi saral kavita... likhi bachho ke liye gayi ho par charitarth sab par hota hai...
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