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शुक्रवार, जनवरी 21, 2011

प्रकृति : पूर्वा शर्मा की नई कविता

प्रकृति


पहाड़ों से खिलाई
फूलों से सजाई
ईश्वर ने हमारी यह धरती थी जब बनाई
कोई कमी न थी छोड़ी
पर इक ग़लती कर दी थोड़ी
दे दी अक्ल हमें ज़्यादा
ग़लत था मानवीय इरादा
तभी पहाड़ हो गए हैं खाली
क्या करे बेचारा माली
जब फूलों का ही मिट गया है नामोनिशान
अब तो ईश्वर भी हो गए हैं हैरान
छिपा है
हाँ, छिपा है इंसानी जीत की हर ख़ुशी में
एक बड़ा नुकसान
जिससे हर क़दम पर हो रही है
प्रकृति परेशान


पूर्वा शर्मा
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अजेय से साभार
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