दादाजी की छड़ी : संगीता स्वरूप
शुक्रवार, जून 18, 2010
दादाजी की छड़ी : संगीता स्वरूप का नया शिशुगीत
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28 टिप्पणियां:
अरे वाह!! पूरी सज-धज के साथ है ये कविता तो. बहुत सुन्दर.
अच्छी बालकविता ! बधाई!
वाह बहुत बढ़िया भावपूर्ण चित्र सहित रचना....कलमकार को बधाई ...प्रस्तुती के लिए आभार
bahut hi sundar baal kavita..
bahut acchi lagi..
aabhaar..
बहुत बढ़िया!
रोचक कविता।
सुन्दर रचना।
सुन्दर बालकविता... बधाई !!
बज़ (Buzz) से इंदु पुरी गोस्वामी ने कहा --
indu puri goswami – इन्हें देख कर बहुत कुछ याद आ गया .पापा जब भी इलाहाबाद से चित्तौड आते किसी ना किसी बुजुर्ग के लिए ऐसी ही बहुत सुंदर सुंदर छड़ी जरूर लाते थे , खूब प्यारी प्यारी मूठ वाली और रंग बिरंगी 18 Jun 2010
बज़ (Buzz) से अनिता सिंह ने कहा --
Anita Singh – ऐसे ही एक खूबसूरत छड़ी इन्हों ने (मेरे पति) अपनी नानी को दी थी जिसे वो बहुत सम्हाल कर रखती थी ....आज वो नहीं है पर उस छड़ी को मेरी सासू माँ ने सम्हाल कर रखी है ........अम्मां से जुडी ऐसी बहुत सी यादे है .......
18 Jun 2010
दी ! आप तो माहिर हो गई हो बल गीत लिखने में ..इतना प्यारा है ये गीत कि कुछ पंक्तियाँ मेरे ज़हन में भी आ गईं ..:)
रामू चाय न लाए जब
ये छड़ी से धमकाते हैं
डर कर भागता है वो जब
गोल गोल फिर घुमाते हैं
मिल जाये चाय तो फिर
ये हो जाती पास खड़ी
मेरे दादा जी की छड़ी :)
बज़ (Buzz) से इंदु पुरी गोस्वामी ने कहा --
Indu Puri Goswami – हमें भी चालीसेक साल बाद जरूरत पडेगी इसकी 'शायद'
रावेंद्रकुमार रवि जी हमारे लिए एक ठो सम्भाले रखना .
भूलना नही. 18 Jun 2010
बज़ (Buzz) से चाणक्य शर्मा ने कहा --
Chankya Sharma – करीब ४००-४५० साल पहले अकबर के एक दरबारी ने लिखा था .
"रहिमन लाठी राखिये बिन लाठी सब सून "
दूसरा है .....
"लाठी में गुण बहुत है ,सदा राखिये संग "
उसी का छड़ी, एक छोटा रूप है . कुछ हीरे जड़ी छड़ी , कुछ हलकी छड़ी , कुछ काली छड़ी ,
कुछ लाल छड़ी ...कुछ मैदान छड़ी ......बस !!! कुछ खूब चली .... 18 Jun 2010
मेरी नज़रें भी आजकल आम पर ही रहती हैं, बडे बूढे एक समान जो होते हैं।बहुत सुन्दर कविता बधाई
बज़ (Buzz) से पद्म सिंह Padm Singh ने कहा --
प्यारी और निराली छड़ियों के लिए शुक्रिया 18 Jun 2010
dada ji kee chhadi to bahut hi apni si hai
अदा जी की टिप्पणी का लिप्यांतरण --
बहुत ही सुंदर बाल कविता ..
बहुत अच्छी लगी ..
आभार ..
रश्मिप्रभा जी की टिप्पणी का लिप्यांतरण --
दादा जी की छड़ी तो बहुत ही अपनी सी लगी
मैं तो आजकल इत्ती डरी सहमी रहती हूँ कि मुझे सब के हाथों में छड़ी ही दिखाई देती है ....और इन लेखिका जी के हाथ में तो ज्यादा ही दिखती है. (हा.हा.हा.)
चर्चा मंच पर
ख़ुशबू के छोड़ें फव्वारे!
शीर्षक के अंतर्गत
इस पोस्ट की चर्चा की गई है!
बज़ (Buzz) से चाणक्य शर्मा ने कहा --
Chankya Sharma – मुझे याद आता है कि छड़ियो का एक मेला लगता था , बताओ किस शहर में लगता tha , आज लगता है या नहीं मालुम नहीं ? बताओ ??? 18 Jun 2010
are wah mummaaaaaa............. :) ek dum maza aa gaya..aam khane jaisa.. :)
श्री स्वप्निल कुमार 'आतिश' की टिप्पणी का लिप्यांतरण -
अरे वाह! एकदम मज़ा आ गया .. आम खाने जैसा ..
बज़ (Buzz) से अनिता सिंह ने कहा --
Anita Singh – छड़ी मुबारक तो सुना है ... मेले का पता नहीं ... 19 Jun 2010
बज़ (Buzz) से इंदु पुरी गोस्वामी ने कहा --
Indu Puri Goswami –
बाबा कहते गोदी में ले मैं आज तुझे दुल्रराऊँ
छड़ी बन जाना मेरी तू ,जब मैं बुढा हो जाऊँ
19 Jun 2010
चाणक्य जी,
छड़ी का मेला शायद मिर्जापुर में लगता होगा....क्यों कि वहाँ की छडियां प्रसिद्ध है ..
सभी पाठकों का आभार
बहुत सुन्दर बालकविता !!
आपके ब्लॉगरोल में लवी के ब्लॉग की पुरानी फीड आ रही है... चाहे तो अपडेट कर लीजिये. लविज़ा के ब्लॉग की नया URL है.. http://blog.laviza.com
thnx
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