शनिवार, मई 21, 2011
बढ़िया बहुत पसीना : रावेंद्रकुमार रवि का एक बालगीत
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14 टिप्पणियां:
बच्चों के लिए बहुत उपयोगी कविता.
सादर
इस कविता को गाने से
मन करता ता था धी ना.
बालक के आगे अब केवल
बजे झुनझुना ... ही ना.
....... मुझे रोचक और ज्ञानवर्धक बाल-कवितायें बेहद कम पढ़ने को मिलती हैं.. आपकी यह कविता श्रेष्ठतम बाल कविताओं में हैं. बधाई.
मौसम के अवुकूल सुन्दर बालगीत!
सुन्दर बाल गीत
सुन्दर बाल गीत| धन्यवाद|
बहुत प्यारी रचना . बधाई .
आज है मेरे बेटे सृजन का जन्म दिन ... बाल मंदिर पर देखिये शेरजंग गर्ग जी की रचना
http://baal-mandir.blogspot.com/
बड़ी अच्छी कविता .... कई सारी बातें भी बताती .....
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इस कविता में बहुत अच्छी बाते हैं जो हम बच्चो के काम की है। धन्यवाद
---कूडा...
----यह भी तो देखिये ---ये बढिया बहुत पसीना कौन सी काव्य कला है..किसे बढिया लगता है...क्या सिखाता है बच्चे को...
लगता है डॉ. श्याम जी गुप्त जी एसी में बैठे हैं, पसीने से नफरत करते हैं... दिमाग पर चढ़ गया है... लाइट जाने दीजिये कुछ अधिक देर के लिये... ठंडे हो जायेंगे...शरीर का कूढा निकल जायेगा.
सुबह-शाम कुछ ठंडक रहती
बीच दोपहर गरमी.
सुबह-शाम गुस्सा कुछ कमतर
दोपहर को चरमी.
राम भजन कर, श्याम भजन कर
तन और मन के करमी*!
निकल जायेगा मैल पसीना
आवेगी कुछ नरमी.
_____________
चरमी = चरम अवस्था
करमी = कर्मचारी
बहुत सुन्दर कविता ।
बेहद खूबसूरत कविता.
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