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सोमवार, अक्तूबर 10, 2011

सो जा मेरे मन के हार : रावेंद्रकुमार रवि की पहली लोरी

सो जा मेरे मन के हार

मन में पड़ने लगी फुहार,
सो जा मेरे मन के हार!


चंदा ने निंदिया भिजवाई,
ख़ुशबू भरकर प्यार!
सो जा मेरे मन के हार!


मस्त हवा के झोंके आकर
तुझको करें दुलार!
सो जा मेरे मन के हार!


सपनों की दुनिया में तुझको
ख़ुशियाँ रहीं पुकार!
सो जा मेरे मन के हार!


मेरी बाहों का झूला भी
तुझे रहा पुचकार!
सो जा मेरे मन के हार!


मेरी आँखों की नदिया में
झूम रही पतवार!
सो जा मेरे मन के हार!

रावेंद्रकुमार रवि

(मेरे साथ सोनमन के छायाकार : सरस पायस)

सृजन : 30.03.2010

11 टिप्‍पणियां:

रचना दीक्षित ने कहा…

गीत तो अच्छा ही होगा यदि वह बच्चे को सुनाने में सफल हुआ. चित्र तो और भी सुंदर आये हैं. बधाई.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत सुंदर लोरी....

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

हमारी बधाई स्वीकारें ||

http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/10/blog-post_10.html
http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_110.html

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत प्यारे चित्र और बहुत ही प्यारा गीत।
--------
कल 12/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

जीवन और जगत ने कहा…

बढि़या लोरी। बिटिया आपके गले से वैसे ही चिपटी हुई जैसे हार।

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

प्यारी लोरी ..बहुत प्यारे फोटो....

Suresh kumar ने कहा…

Wah ji Wah bahut hi khubsurat lori.

Chinmayee ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत और चित्र !

Satish Saxena ने कहा…

यह रचना और फोटो यादगार रहेंगे इस प्यार के !
शुभकामनायें आपको !

चंदन ने कहा…

सुन्दर शब्द और साथ में सुन्दर छवि भी!
अत्यन्त हि भावपूर्ण!

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

"सोजा मेरे मन के हार!" … माधुर्य गुण के कारण लोरी बहुत ही रसभरी है। गीति बहुत ही आनंददायी है। इसकी गूँज से शिशु को बहुत ही अच्छी नींद आयेगी। बड़े कानों में पड़ते ही इसकी गेयता तनावों को विरेचित कर देने की क्षमता ले लेती है।

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