सोमवार, मई 24, 2010
कितने सुंदर हैं गुब्बारे : कृष्णकुमार यादव की नई शिशुकविता
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21 टिप्पणियां:
बहुत प्यारे गुब्बारे है , सही में हम बच्चो के लिए प्यारे है
बहुत प्यारे रंग बिरंगे, लेकिन बच्चो को इस से दुर ही रखे
बेहतरीन कविता और आदि की तस्वीर!! डबल आनन्द रहा!!
सुंदर बाल गीत.
फूँक मार कर इन्हें फुलाओ।
हाथों में ले इन्हें झुलाओ।।
सजे हुए हैं कुछ दुकान में।
कुछ उड़ते हैं आसमान में।।
मोहक छवि लगती है प्यारी।
गुब्बारों की महिमा न्यारी।।
जितना सुन्दर गीत, उतनी ही सुन्दर तस्वीर.
बहुत सुन्दर गुब्बारे..पढ़कर अपना बचपन याद आ गया, जब मेले में जाकर गुब्बारा जरुर खरीदते थे. के.के. यादव जी व रवि जी को बधाई...
गुब्बारों की दुनिया होती,
कितनी-प्यारी और निराली।
हँस देते रोनेवाले भी,
खिल जाती चेहरे पर लाली।
...यही तो गुब्बारों की महिमा है..सुन्दर बाल-कविता.
गुब्बारे तो मुझे भी बहुत प्रिय हैं. इन्हें देखते ही मेरा बचपना जग जाता है. भाई कृष्ण कुमार जी ने बड़ी मनभावन कविता लिखी..हार्दिक बधाई.
अले वाह कित्ते प्याले-प्याले गुब्बाले. ये तो मुझे भी चाहिए..और ये आदि गुब्बालों के साथ क्या कर रहे हैं, मैं भी तो देखूं.
पापा ने तो बड़ी सुन्दर-सुन्दर कविता लिखी इन गुब्बालों पर..बढ़िया है.
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखी है गुब्बारों पर. वाकई काबिले तारीफ़ है! कृष्ण कुमार जी की यह रचना पढ़कर मुझे अपना गाँव और फिर गुब्बारों की याद आ गयी! अब तो गुब्बारे हर जगह दिख जाते हैं, पर पहले तो ये यदा-कदा ही दिखते थे. रवि जी ने भी इसे खूबसूरती से प्रस्तुत किया है.
हँस देते रोनेवाले भी,
खिल जाती चेहरे पर लाली।
..बहुत सुन्दर व सटीक लिखा..बधाई.
गुनगुनाने लायक मनभावन शिशु- गीत...बधाई.
बेहतरीन शिशु गीत...गुब्बारों की निराली दुनिया भला किसे नहीं भाती.
रवि जी, आपका आभार जो मेरी इस बाल-कविता को आपने इतनी खूबसूरती से प्रस्तुत किया...
अति उत्तम रहा ये शिशु गीत. कृष्ण जी एवं रवि जी को कोटिश : बधाइयाँ.
ये आदित्य क्या गुब्बारों को खाने का अभ्यास कर रहे हैं..
अले वाह !! मैंने भी सन्डे को एक शादी में बहुत सारे गुब्बारे फोड़े :)
gubbbare khelne ka mera bhi man ho raha hai...kash...mai bhi itna chota hota...
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