रेल चली, भइ, रेल चली
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झक-पक, छुक-छुक,
झक-पक, छुक-छुक।
रेल चली, भइ, रेल चली।
जब दौड़े जंगल के अंदर,
इसे देखकर झूमे बंदर।
दौड़-दौड़कर पुल के ऊपर,
यह नदिया के पार चली।
टा-टा करते उछल-कूदकर,
मोर नाचते इसे देखकर।
गाँव-शहर से होते-होते,
नानीजी के द्वार चली।
हर मौसम में आती-जाती,
हमको सारा देश घुमाती।
नए दोस्तों से मिलवाती,
ख़ूब बढ़ाती प्यार चली।
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♥♥ रानीविशाल ♥♥
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साभार : अपनी माँ "रानीविशाल" द्वारा अपने लिए रचित
यह गीत "सरस पायस" पर अपने सभी साथियों से
साझा करके अनुष्का "ईवा" बहुत ख़ुश है!
♥♥ संपादक "सरस पायस" ♥♥
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11 टिप्पणियां:
इतना सरस बालगीत रचने के लिए रानी विशाल जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
यह रचना सरस पायस के मानक के अनुरूप है।
बहुत सुंदर जी धन्यवाद
हम्म.. और इस गीत को पढ़ कर अनुष्का के दोस्त यानि के हम भी बहुत खुश है.. :)
सुंदर । बहुत सुंदर ... प्यारा सा गीत । हाँ , यह गीत बहुत-बहुत-बहुत ही सुंदर हो सकता है , यदि अंत मेँ प्रवाह ठीक हो जाए ।सब वाह ! वाह ! करेँगे । क्या विचार है मान्यवर ?
बहुत सुंदर
प्यारा गीत
are wah anuska mama ji bhi aa gye
नागेश भाई,
आपका कहना बिल्कुल सही है!
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ऐसा पहली बार हुआ है,
जब "सरस पायस" पर किसी गीत को
बिना संपादन किए प्रकाशित कर दिया गया!
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मैं रानीविशालजी से विचार-विमर्श करके
इस प्रवाह को पूरी तरह से दूर करने का प्रयास करूँगा!
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इस ओर ध्यान दिलाने के लिए
आपका आभारी हूँ!
नागेश भाई से अनुरोध है --
क्या अब यह गीत प्रवाहमान हो गया है?
कृपया बताएँ!
मान्यवर , आप पाठकोँ के सुझावोँ को इतनी सहजता एवं गंभीरता से स्वीकार करते हैँ और फिर इतनी तत्परता के साथ सजग संपादन भी .,। बाल सखा और पराग जैसी पत्रिकाएँ भले ही आज बंद हैँ किँतु ऐसे ही संपादकोँ की दूरदृष्टि के फलस्वरूप ही आज भी उनका सानी नहीँ है । फिलहाल ... वाह ! वाह ! वाह ! आपके लिए भी और इस सरस गीत की रचनाकार रानी जी के लिए भी । बच्चे इसे मस्ती और पूरी तन्मयता के साथ गाएँगे और ऐसी अन्य श्रेष्ठ रचनाओँ की सोत्साह प्रतीक्षा करेँगे । बधाई... बधाई ...जी , बधाई ।
इस गीत को चार चाँद लगा कर यहाँ प्रकाशित करने के लिए ह्रदय से आभार ...
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