गुरुवार, अक्तूबर 14, 2010
चलता बहुत मटककर : रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत
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16 टिप्पणियां:
वाह बच्चो बहुत सुंदर घोडे लगे तुम लोगो के बहुत मस्ती भरे, ओर रवि अंकल ( अकंल आप बच्चो के ) ने कविता भी बहुत सुंदर लिखी, धन्यवाद.
आप ओर आप के परिवार को, ओर सभी बच्चो को दुर्गाष्टमी की बधाई
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
श्री दुर्गाष्टमी की बधाई !!!
बहुत ही सुंदर बाल कविता ......रवि अंकल
बहुत सुन्दर गीत मामासाब......धन्यवाद !
अनुष्का
बहुत सुन्दर.. सुबह सुबह ये देख दिल खुश हो गया...
धन्यवाद..
बहुत सुन्दर गीत है....
मै भी बाबा का हमेशा घोडा बनाती हू :)
बहुत सुन्दर , चित्र तो लाजबाब है
हँसता रहता, करे न झिक-झिक,
चले दौड़कर घोड़ा टिक-टिक!
...कित्ती प्यारी कविता बनाई आपने. पापा लोगों को घोडा बनाकर मैंने व आदि ने कित्ते प्यारे-प्यारे पोज दिए हैं...है ना.
कविता शानदार है!
चित्र जानदार हैं!
--
आपकी पोस्ट की चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/10/23.html
मेल से प्राप्त संदेश -
कविता खूबसूरत है!
गिरिजा कुलश्रेष्ठ (ग्वालियर)
मेल से प्राप्त संदेश -
सुंदर कविता है व चित्र भी।
sundar kavita hai v chitr bhi.
साधुवाद।
sadhubad.
दिनेश पाठक शशि (मथुरा)
अच्छे चित्रों के साथ अच्छी कविता।
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ऐसा ही एक घोड़ा यहाँ भी पाया गया -
लाडली का घोड़ा!
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ऐसा ही एक घोड़ा यहाँ भी है -
मीशा का घोड़ा!
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एक मज़ेदार घोड़ा यह भी है -
माधव का घोड़ा!
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