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सोमवार, जनवरी 17, 2011

गुब्बारे में बैठे-बैठे : सलोनी राजपूत का नया बालगीत

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गुब्बारे में बैठे-बैठे
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उड़ा जा रहा आसमान में
रंग-रँगीला गुब्बारा!
गुब्बारे में बैठे-बैठे
मैंने देखा जग सारा!

हवा चली तो ख़ूब हिले,
आपस में फिर गले मिले!
हरी-भरी सुन्दर बगिया में
हँसकर सुन्दर फूल खिले!
महक रहा है जग सारा!
उड़ा जा रहा ... ... .


ठुमक-ठुमक उड़ रही पतंग,
उसे देखकर मैं थी दंग!
इधर-उधर कुछ गोते खाकर
मेरे पीछे पड़ी पतंग!
झूम रहा है जग सारा!
उड़ा जा रहा ... ... . 

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सलोनी राजपूत
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4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बिल्कुल मौसम के अनुकूल रचना!
--
सलोनी बिटिया को शुभाशीष!

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

अच्छा लगा यह सुंदर बालगीत .....

माधव( Madhav) ने कहा…

अच्छा लगा यह सुंदर बालगीत

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना... और आपका प्रस्तुतीकरण भी बहुत शानदार है...

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