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गुरुवार, जनवरी 13, 2011

गुदगुदी रजाई : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत

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गुदगुदी रजाई
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दाँतों ने किट-किटकर बात यह बताई
जाड़े में भली लगे गुदगुदी रजाई!

भोर हुई, अंबर में,
कुहरे का साया है!
कुल्फी-सी जमी हुई,
काँप रही काया है!

मुँह खोला, गरम-गरम भाप निकल आई
आँखों से साफ़-साफ़ नहीं दे दिखाई! 
जाड़े में भली लगे ... ... .

शाम को अँगीठी में,
आलू भुनवाया है!
बैंगन का भरता भी,
गरम-गरम खाया है!

गरम-गरम चाय अभी मुँह में है नाई
फिर भी है गले पड़ी सर्दी की टाई!
जाड़े में भली लगे ... ... . 
रावेंद्रकुमार रवि
राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
चारुबेटा, खटीमा (ऊधमसिंहनगर) 262308. 
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7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बिल्कुल मौसम के अनुकूल रचना!
जाड़े में सबसे अच्छी रजाई ही लगती है! मगर मास्टरों को यह ज्यादा देर तक नसीब नही होती! बच्चों की तो छुट्टिया है किन्तु मास्टरों को तो विद्यालय जाना ही पड़ेगा! उत्तराखण्ड सरकार की दृय़्टि में अध्यापकों को सरदी नहीं लगती है!

Shubham Jain ने कहा…

ओहो ठंडी का पूरा मज़ा इस कविता में आ गया...
बहुत सुन्दर...

Mrityunjay Kumar Rai ने कहा…

sundar

बेनामी ने कहा…

वाह !! आज तो सर्दी का भी मज़ा आ गया..। :)

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

अच्छी लगी कविता ....
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…

गरम-गरम चाय अभी मुँह में है नाई –

वाह !! हुजूर !
जिसके नाई , उसने क्या कहा ... ?

मकर संक्रांति की शुभकामनाएं.

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…

गरम-गरम चाय अभी मुँह में है नाई –

वाह !! हुजूर !
जिसके नाई , उसने क्या कहा ... ?

मकर संक्रांति की शुभकामनाएं.

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