गुरुवार, जनवरी 13, 2011
गुदगुदी रजाई : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत
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7 टिप्पणियां:
बिल्कुल मौसम के अनुकूल रचना!
जाड़े में सबसे अच्छी रजाई ही लगती है! मगर मास्टरों को यह ज्यादा देर तक नसीब नही होती! बच्चों की तो छुट्टिया है किन्तु मास्टरों को तो विद्यालय जाना ही पड़ेगा! उत्तराखण्ड सरकार की दृय़्टि में अध्यापकों को सरदी नहीं लगती है!
ओहो ठंडी का पूरा मज़ा इस कविता में आ गया...
बहुत सुन्दर...
sundar
वाह !! आज तो सर्दी का भी मज़ा आ गया..। :)
अच्छी लगी कविता ....
सक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......
गरम-गरम चाय अभी मुँह में है नाई –
वाह !! हुजूर !
जिसके नाई , उसने क्या कहा ... ?
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं.
गरम-गरम चाय अभी मुँह में है नाई –
वाह !! हुजूर !
जिसके नाई , उसने क्या कहा ... ?
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं.
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