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सबसे मीठा-मीठा बोलो
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देखो कोयल काली है, पर मीठी है इसकी बोली!
इसने ही तो कूक-कूककर आमों में मिसरी घोली!
कोयल! कोयल! सच बतलाओ, क्या संदेशा लाई हो?
बहुत दिनों के बाद आज फिर इस डाली पर आई हो!
क्या गाती हो, किसे बुलाती, बतला दो कोयल रानी!?
प्यासी धरती देख, माँगती हो क्या मेघों से पानी?
कोयल! यह मिठास क्या तुमने अपनी माँ से पाई है?
माँ ने ही क्या तुमको मीठी बोली यह सिखलाई है?
डाल-डाल पर उड़ना-गाना जिसने तुम्हें सिखाया है!
"सबसे मीठा-मीठा बोलो!" - यह भी तुम्हें बताया है!
बहुत भली हो, तुमने माँ की बात सदा ही है मानी!
इसीलिए तो तुम कहलाती हो सब चिड़ियों की रानी!
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सुभद्राकुमारी चौहान की कविता : कोयल
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चित्र में नर कोयल है! नर कोयल ही गाता है! मादा कोयल गाना नहीं जानती!
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9 टिप्पणियां:
कालजयी कवयित्री की रचना देख कर मन आह्लादित हो उठा । विरासत को सहेजने की दृष्टि से आपका यह आयोजन श्लाघनीय है । बधाई ।
कालजयी कवयित्री की रचना देख कर मन आह्लादित हो उठा । विरासत को सहेजने की दृष्टि से आपका यह आयोजन श्लाघनीय है । बधाई ।
प्यारी कविता..प्यारी कोयल...प्यारा डाक-टिकट भी.
सुभद्रा कुमारी चौहान को नमन!
बहुत सुंदर कविता .....
प्यारी कविता
पहली बार सुभद्रा कुमारी चौहान की यह कविता पढ़ी। इस कविता को ब्लॉग पर प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद। मैं जब भी आपके ब्लॉग पर आता हूँ, मेरा बचपना जाग उठता है। आपका ब्लॉग उस कोमल फूल की भांति है जो दूर दूर तक अपनी खुशबू फैला रहा है।
अति सुंदर रचना जी, धन्यवाद
वाह ! कितनी प्यारी कविता है मेरे मन को बहुत बहुत भाई ....अच्छी अच्छी शिक्षा देने वाली इस कविता को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद मामासाब .
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