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बुधवार, जून 23, 2010

मन ललचाती : रावेंद्रकुमार रवि का नया शिशुगीत


चाती




आइसक्रीम, आइसक्रीम,
सबने मिलकर खाई!


बंद पड़ी थी जो सर्दी में
फ़्रिज के अंदर रूठी,
भाप उड़ाती, मन ललचाती
आज निकलकर आई!
आइसक्रीम ... ... .


Laviza


कोई खाता स्वीट मैंगो,
कोई चखे वनीला,
चॉकलेट के फ्लेवरवाली
सबके मन को भाई!
आइसक्रीम ... ... .


रावेंद्रकुमा वि 


(चित्र में है : लविज़ा)

11 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बड़ी मीठी और ठंडी कविता है, आइसक्रीम की तरह :)

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

अब इतनी रात को ..! कहाँ मिलेगी आइसक्रीम..! शाम होती तो खाकर फिर ब्लॉग देखता.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

अरे रे, एक आत्मा के मुँह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं!
--
आप तो कहीं भी जाकर, कहीं भी घुस सकते हैं!

Udan Tashtari ने कहा…

मन कर आया अब तो आईसक्रीम खाने का इतनी बढ़िया कविता पढ़कर.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह.....इतनी भीषण गर्मी में यह कविता पढ़ कर ठंडक महसूस हो रही है...और चित्र दिखा कर तो और ललचा रहे हैं आप...

सरस पायस का नया कलेवर आकर्षक लगा .

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे वाह कितने प्रकार की आईस चाकलेट, पिस्ता, वनिले, स्टाबरी ओर किंबी बहुत मजे दार जी ओर इन सब का मजा आ गया आप की कविता मै. धन्यवाद

माधव( Madhav) ने कहा…

Mouthwatering post, Yummy

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अब तो मेरा भी मन ललचा गया..मैं तो चली आइसक्रीम खाने.

____________________________
'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' !

बेनामी ने कहा…

मुंह में पानी आ रहा है।
---------
क्या आप बता सकते हैं कि इंसान और साँप में कौन ज़्यादा ज़हरीला होता है?
अगर हाँ, तो फिर चले आइए रहस्य और रोमाँच से भरी एक नवीन दुनिया में आपका स्वागत है।

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…

रोचक है.बड़ा मजा आया

Coral ने कहा…

बहुत सुन्दर आइसक्रीम और गीत ....

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