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बुधवार, जून 16, 2010

आए जब दो पाखी उड़कर : रावेंद्रकुमार रवि का नया बालगीत


आए जब दो पाखी उड़कर



मेरे घर में बना एक घर,
आए जब दो पाखी उड़कर!


मादा ने दो अंडे देकर,
गरम किया फिर उनको सेकर!
कुछ दिन बाद निकलकर आए,
उसके दो बच्चे मन भाए!

चोंच खोलकर चुग्गा खाते,
पर उनके ना निकले थे पर!
मेरे घर में ... ... .


माँ आती जब चुग्गा लेकर,
हल्ला करते चींचीं कर-कर!
कुछ दिन बाद खुल गईं अँखियाँ,
उगने लगीं मुलायम पँखियाँ!

कुछ दिन बाद सिखाएगी माँ,
उड़ना, तब निकलेंगे बाहर!
मेरे घर में ... ... .


रावेंद्रकुमार रवि


15 टिप्‍पणियां:

Dev K Jha ने कहा…

बहुत सुन्दर.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपका बालगीत बहुत सुन्दर है!
--
माँ के हैं उपकार बहुत
वो क.ख.ग. सिखलाती है!
उँगली पकड़ लाल की
वो ही तो चलना सिखलाती है!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन!!

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

सुन्दर । वीडियो गेम में उलझे बच्चों के लिए ऐसी रचनाएँ उन्हें बचपन के करीब तो रखेंगी ही, अपने परिवेश से भी जोड़े रखेंगी।

शीर्षक का चित्र बहुत अच्छा लगा।

Shubham Jain ने कहा…

bahut sundar kavita...

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

रंजन जी की टिप्पणी का हिंदी अनुवाद - "आकर्षक!"

Harminder Singh ने कहा…

हमारे घर में अक्सर यह देखने को मिलता है, काफी बार कबूतर हमारे घर में घोंसले बना लेंते है व अण्डें दे देते है । एक सुखद अनुभव होता है व खुशी है जो बच्चों को किताबो में ही पढ़ने को मिलता है उसे अपनी आँखों से देख रहे है व उसका अनुभव ले रहे है।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

शुभम् जैन जी की टिप्पणी का लिप्यांतरण -

"बहुत सुंदर कविता!"

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कितना सुन्दर है यह बालगीत.....पढते पढते सारा दृश्य आँखों के सामने आ गया....रावेंद्र जी को बधाई

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

Bau jee,
Ho sakta hai ke aap comment hata de, roman me jo hai!
Lekin geet mujhe pasand aaya.....
Bhavishya mein apne baccho ke saath aaya karunga.....
Ha ha ha ha!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

रावेन्द्र जी, बहुत खूबसूरत बालगीत है आपका---चित्र भी बहुत सुन्दर लगाया है आपने।हार्दिक बधाई।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

हेमंत जी,
यह मेरे परिवार का सौभाग्य है,
जो इन नन्हे चूज़ों के माता-पिता ने
अपना घर मेरे घर में बनाया!
--
इनके कुछ और सुंदर फ़ोटो
मैं समय-समय पर आप सबको दिखाता रहूँगा!

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

आशीष जी की टिप्पणी का लिप्यांतरण -

बाउ जी,
हो सकता है कि आप कमेंट हटा दें, रोमन में जो है!
लेकिन गीत मुझे पसंद आया ........
भविष्य में अपने बच्चों के साथ आया करूँगा ......
हा हा हा हा!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

भाई रवि,आपका गीत नन्हे बच्चों जैसा ही मासूम और प्यारा है ।मुझे वे दिन याद आगये जब मेरे आँगन में बुलबुल ने घोंसला बनाया और मेरी कई कविताओं व एक कहानी का जन्म हुआ ।निरीक्षण में ऐसी कोमलता व गहनता बनी रहे ,बढती रहे मेरी कामना है ।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

मैं भी तो पाखी हूँ...

प्यारा लगा यह बाल गीत और 'पाखी' तो बहुत प्यारी लगी.

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