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मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011

वाह समोसा : डॉ. मोहम्मद अरशद ख़ान का शिशुगीत

वाह समोसा! वाह समोसा!


मन करता है ले लूँ बोसा -
वाह समोसा! वाह समोसा!

रूप तिकोना कितना सुंदर,
भरा चटपटा आलू अंदर,
गर्म आँच पर पका-पकाकर,
गया तेल में पाला-पोसा!
इसको खाकर निकले मुँह से -
वाह समोसा! वाह समोसा!

डॉ. मोहम्मद अरशद ख़ान

10 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुबह-सुबह इसे देखकर मुँह में पानी आ गया!
अभी लाता हूँ एक दर्जन समोसे,
पूरे परिवार के लिए!
सुन्दर रचना पढ़कर तो यही कहूँगा!
वाह समोसा!

Udan Tashtari ने कहा…

वाह समोसा!

बढ़िया शिशु गीत!!

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

वाह समोसा वाह समोसा

मजेदार कविता .......

Mrityunjay Kumar Rai ने कहा…

भाई
मुह में पानी आ गया

aarkay ने कहा…

डॉ . साहिब , मुंह में पानी भी आया और रूह भी खुश हुई !

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

.

वाह समोसा! वाह समोसा!!
किसके लिये गया परोसा.
खुद ही खा लोगे छिप करके?
देखा तुमने नहीं पड़ोसा.

उड़न तश्तरी उच्चारण ने
अरशद हलवाई को कोसा.
चैतन्य आरके मृतुन्जय को
मिल पायेगा .. नहीं भरोसा.

.

Deepak Saini ने कहा…

वाह समोसा वाह समोसा
भई वाह क्या बात है.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

वाह जी वाह समोसा की सुंदर कविता ...बड़ी अच्छी लगी....

जीवन और जगत ने कहा…

अच्‍छी बालकविता। समोसे पर एक पहेली याद आ रही है जो बचपन में हम एक दूसरे से पूछा करते थे- तीन पॉंव की तितली, नहा धोकर निकली।

बेनामी ने कहा…

आहा समोसा !

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