"सरस पायस" पर सभी अतिथियों का हार्दिक स्वागत है!

बुधवार, जुलाई 28, 2010

चलते-चलते : गुलज़ार की एक नई कविता

चलते-चलते



आदमी के पाँव दो हैं, पाँव-पाँव चलता है!
पंछी भी कभी-कभी तो छाँव-छाँव चलता है!

पैर हैं न पंख हैं, फिर भी यह हवा चले!
चलनेवाले कैसे-कैसे, देखो किस तरह चले!

अपने आप चलते-चलते मेज़ पर से गिर पड़ी!
माधव ने कहा था, "कल भी चल रही थी यह घड़ी!"

माधव ने बताया, "बाबू, फ़ोन फिर से चल पड़ा!
मैंने समझा, नंगे पाँव धूप में निकल पड़ा!"

गुंडों की लड़ाई में तो हॉकियाँ भी चलती हैं!
कहते हैं, कभी-कभी चालाकियाँ भी चलती हैं!

ठाँय-ठाँय करती, सनसनाती गोलियाँ चलीं!
बिन सड़क के, बस्तियों में कितनी बोलियाँ चलीं!

हिलती-डुलती भी नहीं, मगर दुकान चलती है!
मुँह में है बँधी हुई, मगर ज़बान चलती है!

गर्मी, सर्दी, आँधी, पानी, एक जैसा चलता है!
रात हो या दिन हो कहते हैं कि पैसा चलता है!

दाएँ, बाएँ हर तरफ रिवाज़ चलते रहते हैं!
बैठे-बैठे भी तो काम-काज चलते रहते हैं!



-----------------------
कवि : गुलज़ार
-----------------------
चित्रकार : अतनु राय
----------------------------------------
चकमक के जिस पृष्ठ पर यह कविता प्रकाशित हुई है,
उसे बड़ा करके स्पष्ट रूप से देखने के लिए नीचेवाले चित्र पर चटका लगाइए!
---------------------------------------------------------

2 टिप्‍पणियां:

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

शुक्रिया इसे पढाने के लिए.

आभार.

rashmi ने कहा…

अद्भुत...गुलजार साहेब की एक अच्छी कविता से रु-व -रु करवाने के लिए धन्यवाद

Related Posts with Thumbnails

"सरस पायस" पर प्रकाशित रचनाएँ ई-मेल द्वारा पढ़ने के लिए

नीचे बने आयत में अपना ई-मेल पता भरकर

Subscribe पर क्लिक् कीजिए

प्रेषक : FeedBurner

नियमावली : कोई भी भेज सकता है, "सरस पायस" पर प्रकाशनार्थ रचनाएँ!

"सरस पायस" के अनुरूप बनाने के लिए प्रकाशनार्थ स्वीकृत रचनाओं में आवश्यक संपादन किया जा सकता है। रचना का शीर्षक भी बदला जा सकता है। ये परिवर्तन समूह : "आओ, मन का गीत रचें" के माध्यम से भी किए जाते हैं!

प्रकाशित/प्रकाश्य रचना की सूचना अविलंब संबंधित ईमेल पते पर भेज दी जाती है।

मानक वर्तनी का ध्यान रखकर यूनिकोड लिपि (देवनागरी) में टंकित, पूर्णत: मौलिक, स्वसृजित, अप्रकाशित, अप्रसारित, संबंधित फ़ोटो/चित्रयुक्त व अन्यत्र विचाराधीन नहीं रचनाओं को प्रकाशन में प्राथमिकता दी जाती है।

रचनाकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे "सरस पायस" पर प्रकाशनार्थ भेजी गई रचना को प्रकाशन से पूर्व या पश्चात अपने ब्लॉग पर प्रकाशित न करें और अन्यत्र कहीं भी प्रकाशित न करवाएँ! अन्यथा की स्थिति में रचना का प्रकाशन रोका जा सकता है और प्रकाशित रचना को हटाया जा सकता है!

पूर्व प्रकाशित रचनाएँ पसंद आने पर ही मँगाई जाती हैं!

"सरस पायस" बच्चों के लिए अंतरजाल पर प्रकाशित पूर्णत: अव्यावसायिक हिंदी साहित्यिक पत्रिका है। इस पर रचना प्रकाशन के लिए कोई धनराशि ली या दी नहीं जाती है।

अन्य किसी भी बात के लिए सीधे "सरस पायस" के संपादक से संपर्क किया जा सकता है।

आवृत्ति