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- पापा, कैसे करूँ पढ़ाई : डॉ. बलजीत सिंह की बालकविता
- प्याज की बात निराली है : सरस चर्चा ( २३ )
- रुको कबूतर : डॉ. नागेश पांडेय "संजय" की नई शिशुकविता
- आओ, मन का गीत रचें : एक : कोई भी रच सकता है
- सरस-पहेली : तीन : का हल
- सरस-पहेली : दो : 14 साल तक के साथियों के लिए
- परिणाम : (द्वितीय भाग) : आओ, मन का गीत रचें - एक
- परिणाम (द्वितीय भाग) : आओ मन का गीत रचें - दो
- परिणाम : (प्रथम भाग) : आओ, मन का गीत रचें - एक
- सबसे प्यारी तुम : रावेंद्रकुमार रवि की नई कविता
- नाचे मोर : रावेंद्रकुमार रवि की नई शिशुकविता
- हम बगिया के फूल : डॉ. बलजीत सिंह का बालकविता-संकलन
- बचपन बेटी बन आया : सरस चर्चा (22)
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7 टिप्पणियां:
your editing is माशा अल्लाह
एकदम लयबद्ध लिखा है आपने..
बिलकुल जैसी बचपन में किताबों में पढते थे...
अरे वाह!
कितनी जीवन्त कविता है!
नागेश जी को बहुत-बहुत बधाई!
बहुत सुन्दर कविता....बधाई.
कबूतर पर डा. नागेश सर की कविता पढ़कर मन तारो ताजा हो गया . फोटो इतने अच्छे आप कैसे ले आते हैं ?
वहुत सुन्दर
कबूतरों के स्वाभाव को देखकर मैंने एक कहानी लिखी है जिसका शीर्षक है "कब्बूड़ा" ! नभ में उड़ते कबूतरों की एक आदत है जब कभी ज़मीन पर बिखरे हुए अनाज के दाने देखते हैं, तब बिना सोचे-समझे एक साथ वे नीचे उतरकर उन दानों पर टूट पड़ते हैं ! यही स्वाभाव इंसानों में पाया जाता है, स्कूलों में या कार्यालयों में मिठाई पर इनके एक साथ टूट पड़ने की प्रवृति इन इंसानों में देखी गयी है ! गाँवों की स्कूलों में इस तरह मिठाई पर टूट पड़ने को "कब्बूड़ा पड़ना" कहा गया है ! यदि आप यह कहानी पढ़ना चाहते हैं, तो आप ई पत्रिका साहित्य शिल्पी ओपन कीजिये और मेरी स्वरचित मारवाड़ी कहानी "कब्बूड़ा" पढ़िए, जैसे-जैसे आप इसे पढ़ते जायेंगे आप ठहाके लगाकर हंसते जायेंगे ! डरिये मत,साहित्य शिल्पी में यह कहानी आपको हिंदी में अनुवाद की हुई मिल जायेगी ! आप इसे पढ़ते-पढ़ते एक गांव की स्कूल के शिक्षकों के बारे में जानकारी ज़रूर लेंगे और कहेंगे 'इन ग्रामीण अध्यापकों की क्या मस्त ज़िन्दगी है ?' - दिनेश चन्द्र पुरोहित [लेखक एवं अनुवादक] ई मेल dineshchandrapurohit2@gmail.com
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