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मेरी गइया बहुत निराली,
सीधी-सादी, भोली-भाली।
उसका बछड़ा बहुत सलोना,
प्यारा-सा वह एक खिलौना।
मैं जब गइया दुहने जाता,
वह "अम्माँ" कहकर चिल्लाता।
सारा दूध नहीं दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।
थोड़ा ही ले जाना भइया,
सीधी-सादी मेरी मइया।
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डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक
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6 टिप्पणियां:
अरे वाह!
मुझे पता ही नहीं चला और मेरी कविता सरस पायस पर छप भी गई!
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आपका बहुत-बहुत आभार!
इतने सरल शब्दों में इतनी गंभीर बात! सुना है गौ माता अपने बच्चे के लिए आवश्यक दूध रोक लेती है तब लालची आदमी बछड़े को दूध पीने देता है और कुछ ही क्षणों में उसे अलग भी कर देता हैताकि बचा खुचा भी दुह सके.
बहुत सुंदर वाल कविता जी, धन्यवाद
बहुत सुन्दर कविता...
इस सुन्दर पोस्ट की चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी तो है!
http://mayankkhatima.uchcharan.com/2011/02/30-33.html
बहुत प्यारी कविता है ।
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