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शनिवार, अप्रैल 10, 2010

माँग नहीं सकता न : पंकज शर्मा की एक लघुकथा

माँग नहीं सकता न
बस-स्टैंड पर खड़ा हुआ मैं, बस का इंतज़ार कर रहा था ।
मेरे सामने खड़ी बस में बैठा एक आदमी पकौड़े खा रहा था ।
उसने खाते-खाते पकौड़े का एक टुकड़ा
करीब दस साल के उस लड़के के हाथ पर धर दिया,
जो कुछ देर से उसकी सीटवाली खिड़की के पास हाथ फैलाए खड़ा था ।

मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि लड़के ने झट से
वह टुकड़ा अपनी शर्ट की जेब में डाल लिया।

कुछ ही देर बाद वह मेरे सामने भी हाथ फैलाकर खड़ा हो गया ।
मैंने उसके हाथ पर दो रुपए का सिक्का रखते हुए पूछा -
"तुमने पकौड़ा खाया क्यों नहीं ?"

अचानक पूछे गए इस सवाल से वह थोड़ा सकपकाया,
पर अगले ही पल सँभलकर बोला - "यह मेरे भाई के लिए है!"

"भाई के लिए क्यों ?" - मैंने दूसरा सवाल भी पूछ लिया ।

इस बार उसने अपने चेहरे पर खिलती हुई मुस्कान के साथ बताया -
"क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है । माँग नहीं सकता न, इसलिए!"




पंकज शर्मा

प्लॉट नंबर - 19, सैनिक विहार,
विकास पब्लिक स्कूल के सामने, जंडली, अंबाला शहर (हरियाणा)

16 टिप्‍पणियां:

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी घटना । कितना प्यार था उसे अपने छोटे भाई के प्रति । पंकज जी को धन्यवाद ।

दीनदयाल शर्मा ने कहा…

पंकज शर्मा ने बहुत ही संवेदना से ओतप्रोत लघु कथा लिखी है...इसमें छोटे भाई के प्रति प्यार..जिम्मेदारी और त्याग स्पष्ट झलकता है.. फोटो भी लघु कथा से पूरा मेल खा रहा है...ब्लोग्गर और लेखक भाई रावेन्द्र कुमार जी और लेखक बधाई के पात्र हैं...फिर से बधाई. http://deendayalsharma.blogspot.com

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 11.04.10 की चर्चा मंच (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई,
मनोज कुमार जी!
--
आभारी हूँ!

हर्षिता ने कहा…

बहुत ही मार्मिक कथा है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

यह छोयी सी कहानी
बहुत ही शिक्षाप्रद है!
--
वर्तमान में जहाँ भाई-भाई से विमुख होते जा रहे हैं!
उनको प्रेम का पाठ पढ़ाने में
पंकज शर्मा जी की लघुकथा
महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करनें मे
उपयोगी सिद्ध होगी!

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी लघुकथा--पंकज जी को हर्दिक बधाई।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

रिश्तों में अभी भी गर्माहट बाकी है...अच्छी लघुकथा....बधाई

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

मन को झकझोर देने वाली रचना ... गरीबी में भी भाई के प्रति ममता ... वो भी इतनी कच्ची उम्र में ... दिल को छुं गयी !

Rohit Singh ने कहा…

मांग नहीं सकता न....भाई के लिए प्रेम जिंदा है पर बड़े होते होते कहां खो जाता है प्यार....मांगना आज भी है, पहले भी था, पर तब इतने लोग मजबूर नहीं थे, कहानी बढ़िया..

बलराम अग्रवाल ने कहा…

यह लघुकथा जहाँ आर्थिक विद्रूपता का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है, वहीं सदाशयता और संबंधों में बरकरार रसात्मकता का भी cइत्रण करने में सफल है। उत्कृष्ट निर्वाह। बहुत-बहुत बधाई।

बेनामी ने कहा…

मन को झकझोर देने वाली रचना ..
dil ko chhu gayi....
agli rachnaon ka intzaar rahega.....

माधव( Madhav) ने कहा…

पापा को कहानी बहुत अच्छी लगी . बेहद मार्मिक और हृदयस्पर्शी और दिल के कोने को छूने वाली कहानी है . इस धरती पर ऐसे रिश्ते ही तो है जो आदमी को आदमी बना रहे है और जब तक एसे रिश्ते है निराश होने की जरुरत नहीं है , लेखक को बधाई

Shubham Jain ने कहा…

बहुत ही मार्मिक रचना ...पंकज जी को हर्दिक बधाई!

शरद कोकास ने कहा…

बहुत कुछ कहती है यह लघुकथा ।

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