मेरे सामने खड़ी बस में बैठा एक आदमी पकौड़े खा रहा था ।
उसने खाते-खाते पकौड़े का एक टुकड़ा
करीब दस साल के उस लड़के के हाथ पर धर दिया,
जो कुछ देर से उसकी सीटवाली खिड़की के पास हाथ फैलाए खड़ा था ।
वह टुकड़ा अपनी शर्ट की जेब में डाल लिया।
मैंने उसके हाथ पर दो रुपए का सिक्का रखते हुए पूछा -
"तुमने पकौड़ा खाया क्यों नहीं ?"
पर अगले ही पल सँभलकर बोला - "यह मेरे भाई के लिए है!"
"क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है । माँग नहीं सकता न, इसलिए!"
प्लॉट नंबर - 19, सैनिक विहार,
16 टिप्पणियां:
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी घटना । कितना प्यार था उसे अपने छोटे भाई के प्रति । पंकज जी को धन्यवाद ।
पंकज शर्मा ने बहुत ही संवेदना से ओतप्रोत लघु कथा लिखी है...इसमें छोटे भाई के प्रति प्यार..जिम्मेदारी और त्याग स्पष्ट झलकता है.. फोटो भी लघु कथा से पूरा मेल खा रहा है...ब्लोग्गर और लेखक भाई रावेन्द्र कुमार जी और लेखक बधाई के पात्र हैं...फिर से बधाई. http://deendayalsharma.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 11.04.10 की चर्चा मंच (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
nice
यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई,
मनोज कुमार जी!
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आभारी हूँ!
बहुत ही मार्मिक कथा है।
यह छोयी सी कहानी
बहुत ही शिक्षाप्रद है!
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वर्तमान में जहाँ भाई-भाई से विमुख होते जा रहे हैं!
उनको प्रेम का पाठ पढ़ाने में
पंकज शर्मा जी की लघुकथा
महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करनें मे
उपयोगी सिद्ध होगी!
बहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी लघुकथा--पंकज जी को हर्दिक बधाई।
रिश्तों में अभी भी गर्माहट बाकी है...अच्छी लघुकथा....बधाई
मन को झकझोर देने वाली रचना ... गरीबी में भी भाई के प्रति ममता ... वो भी इतनी कच्ची उम्र में ... दिल को छुं गयी !
मांग नहीं सकता न....भाई के लिए प्रेम जिंदा है पर बड़े होते होते कहां खो जाता है प्यार....मांगना आज भी है, पहले भी था, पर तब इतने लोग मजबूर नहीं थे, कहानी बढ़िया..
यह लघुकथा जहाँ आर्थिक विद्रूपता का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है, वहीं सदाशयता और संबंधों में बरकरार रसात्मकता का भी cइत्रण करने में सफल है। उत्कृष्ट निर्वाह। बहुत-बहुत बधाई।
मन को झकझोर देने वाली रचना ..
dil ko chhu gayi....
agli rachnaon ka intzaar rahega.....
पापा को कहानी बहुत अच्छी लगी . बेहद मार्मिक और हृदयस्पर्शी और दिल के कोने को छूने वाली कहानी है . इस धरती पर ऐसे रिश्ते ही तो है जो आदमी को आदमी बना रहे है और जब तक एसे रिश्ते है निराश होने की जरुरत नहीं है , लेखक को बधाई
बहुत ही मार्मिक रचना ...पंकज जी को हर्दिक बधाई!
बहुत कुछ कहती है यह लघुकथा ।
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