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शनिवार, नवंबर 06, 2010

सूखें तो किशमिश बन जाते : डॉ. नागेश पांडेय संजय की बालग़ज़ल

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सूखें तो किशमिश बन जाते
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मधुर-मधुर प्यारे अंगूर,
गोल-गोल न्यारे अंगूर।


कभी नहीं जी भरता इनसे,
हों कितने सारे अंगूर।

सूखें तो किशमिश बन जाते,
रस के चटखारे अंगूर।


बाबा के चश्मे से लगते,
बिल्कुल गुब्बारे अंगूर।

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डॉ. नागेश पांडेय संजय
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4 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

ज्योति पर्व के अवसर पर आप सभी को लोकसंघर्ष परिवार की तरफ हार्दिक शुभकामनाएं।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

शानदार..

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

बहुत अच्छी लगी अंगूर कविता....

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कविता जी, आप सभी को दिपावली की शुभकामनायें.

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