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मंगलवार, नवंबर 16, 2010

आवाज़ निकालो : महेंद्र भट्ट की शिशुकविता

आवाज़ निकालो

पंडितजी ने एक बालक को बुलाया, 
उसके हाथ में एक लड्डू थमाया, 
फिर बोले, "इसे हवन-कुंड में डालो 
और मुँह से आवाज़ निकालो - स्वा: हा!" 

बालक ने पंडितजी से लड्डू लिया, 
तुरंत अपने मुँह के हवाले किया 
और बोला, "आ: हा!" 

pranjal_laddu2
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"♥" महेंद्र भट्ट "♥"
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(चित्र में है : प्रांजल) 
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(लल्लू जगधर, नवंबर : १९९९ से साभार)
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4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

चुटकुला तो बहुत बढ़िया रहा!
--
प्रांजल की छवि बहुत अच्छी है!

Archana Chaoji ने कहा…

न "स्वा:हा!",न आ: हा!,हमने किया बस वाह! वाह

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

कविता पढ़ कर मेरे मुंह से निकला ---वाह वाह---महेन्द्र जी को शुभकामनायें---ऐसे ही लिखते रहें।

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

वाह मजेदार....

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