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गुरुवार, दिसंबर 30, 2010

पापा, कैसे करूँ पढ़ाई : डॉ. बलजीत सिंह की बालकविता

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पापा, कैसे करूँ पढ़ाई?
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सूर्य निकलने से पहले ही मम्मी मुझे जगातीं।
मल-मलकर पूरे शरीर को भली-भाँति नहलातीं।
रगड़-रगड़ मेरे शरीर को, उसमें गरमी लातीं।
जब बालों में कंघी करतीं, धीरे-धीरे गातीं।
सुबह-सुबह वह मुझे खिलातीं रोज़ पराँठा ढाई।
पापा, कैसे करूँ पढ़ाई?


दादाजी जब देखो मुझ पर हुक्म चलाते रहते।
छोटू को "शू-शू" करवाने को मुझसे सब कहते।
घंटी बजने पर सब कहते, "देख, कौन आया है?"
सच कहता हूँ, बहुत नाक में मेरी दम आया है।
जूते-चप्पल मुझसे ही ढुँढवातीं चाची-ताई।
पापा, कैसे करूँ पढ़ाई?

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डॉ. बलजीत सिंह
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7 टिप्‍पणियां:

मंजुला ने कहा…

सुन्दर कविता ...मज़ा आ गया ........


नव वर्ष की शुभकामनाये...

जीवन और जगत ने कहा…

अच्‍छी कविता हैा विनोद का पुट तो है ही साथ ही चित्रात्‍मकता भी हैा कविता पढकर मुझे भी मॉं द्वारा नहलाये जाने और कालबेल बजने पर घर का फाटक खुलवाये जाने जैसी बचपन की घटनायें याद आ गईंा सुन्‍दर रचना के लिए रचनाकार और प्रस्‍तुतकर्ता दोनों को बधाईा

डॉ. नागेश पांडेय संजय ने कहा…

बालगीत बाल मन के अनुकूल है . शायद आपको पता हो कि मैंने डा. बलजीत सिंह जी की नयी पुस्तक कि भूमिका में उन्हें बाल-मन जीत सिंह की संज्ञा दी है . वे बाल मन को जीत लेते हैं . बधाई आपको और उन्हें भी , साथ ही सरस पायस के सभी पाठकों को नए वर्ष की शुभकामनायें . http://abhinavsrijan.blogspot.com

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कविता जी,ऎसा तो सभी बच्चो के संग होता हे भाई.
बच्चे कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर के पढाई करो, या फ़िर छत पर धुप मे बेठ कर, लेकिन घर वालो को बता कर.... नही तो होगी जोर दार पिटाई

बेनामी ने कहा…

बालमन और सरस पायस के अनुरूप सुन्दर रचना!
आपको नव वर्ष मंगलमय हो!

खबरों की दुनियाँ ने कहा…

सच है , बच्चों को ऐसे ही तंग करते हैं हम सब - अच्छी पोस्ट , नववर्ष की शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...


*काव्य-कल्पना*:-दर्पण से परिचय

*गद्य सर्जना*:-पुराने साल की कुछ यादे

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