जी भरकर इठलाता मोर।
झूम-झूम अपनी मस्ती में,
सबको नाच दिखाता मोर।
हमें बहुत ललचाता मोर।
आओ, हम भी नाचें-गाएँ,
देखो, यही सिखाता मोर।
सूर्यकुमार पांडेय
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9 टिप्पणियां:
इस कविता में बादल के सौंदर्य में छिपे
जादुई आकर्षण को समेट कर
जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है,
उसके लिए आप बधाई के पात्र है ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 01.08.10 की चर्चा मंच में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुंदर गीत जी धन्यवाद
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मनोज जी,
इस कविता को चर्चित करने के लिए आपका आभारी हूँ!
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इस चर्चा में आपके द्वारा किया गया अनूठा श्रम वंदनीय है!
बहुत सुन्दर गीत
सूर्यकुमार पांडेय जी की बात ही कुछ और है.
बहुत सुन्दर कविता,बेहद प्रभावशाली!
सुन्दर
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