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शनिवार, जुलाई 31, 2010

आओ, हम भी नाचें-गाएँ : सूर्यकुमार पांडेय की शिशुकविता

आओ, हम भी नाचें-गाएँ



आसमान में घिरते बादल,
जी भरकर इठलाता मोर।

झूम-झूम अपनी मस्ती में,
सबको नाच दिखाता मोर।



पंखों को फैलाकर अपने,
हमें बहुत ललचाता मोर।

आओ, हम भी नाचें-गाएँ,
देखो, यही सिखाता मोर।




सूर्यकुमार पांडेय

9 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

इस कविता में बादल के सौंदर्य में छिपे
जादुई आकर्षण को समेट कर
जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है,
उसके लिए आप बधाई के पात्र है ।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 01.08.10 की चर्चा मंच में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर गीत जी धन्यवाद

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

मनोज जी,
इस कविता को चर्चित करने के लिए आपका आभारी हूँ!
--
इस चर्चा में आपके द्वारा किया गया अनूठा श्रम वंदनीय है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

सूर्यकुमार पांडेय जी की बात ही कुछ और है.

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता,बेहद प्रभावशाली!

माधव( Madhav) ने कहा…

सुन्दर

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