शनिवार, जुलाई 24, 2010
मेरा मन : रावेंद्रकुमार रवि की नई कविता
जब नीले आसमान पर
काले-सफ़ेद रंगों की
कोमल और गुदगुदी
परतें चढ़ जाती हैं
और
परतों के बीच से निकले
मधुर संगीत से
मस्त होकर
वसुधा का अंग-अंग
थिरकने लगता है,
पौधे झूमने लगते हैं,
कलियाँ मुस्कराने लगती हैं,
भौंरे गुनगुनाने लगते हैं,
पंछी चहचहाने लगते हैं
और मेढक
उठाकर अपनी "टर्र" का तानपूरा
कोई विचित्र राग
अलापने लगते हैं
तथा
इन सब ध्वनियों को
अपने आप में समेटे
हवा
जब धीरे-से
मेरा स्पर्श करती है,
तो मेरा मन
रिमझिम के संगीत के साथ
झंकृत होकर
प्रीत का गीत
गाने लगता है!
मेरा मन
मुझे ही
लुभाने लगता है!
रावेंद्रकुमार रवि
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8 टिप्पणियां:
NAI KAVITA SUNDAR HAI..INDRADHANUSH SEE SUNDAR...
प्रत्येक मन में अनेक विशेषताएं छुपी होती है,जिन्हें जागृत करके ही व्यिक्ति का जीवन सफल और सार्थक बन सकता है।
सुन्दर
हवा
जब धीरे-से
स्पर्श करती है,
मन रिमझिम के
संगीत के साथ
झंकृत होकर
प्रीत का गीत
गाने लगता है!
मेरा मन
मुझे ही
लुभाने लगता है!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति! अच्छी रचना के लिए आपको बधाई.
-सुधीर सक्सेना 'सुधि'
बहुत सुन्दर कविता, प्रकृति के रंगों में रंगी एक ताजगी भरी रचना, बेहद प्रभावशाली, बहुत सुन्दर, बहुत खूब! बेहतरीन!
बहुत सुन्दर कविता,
बहुत सुन्दर रचना...
किसका मन नहीं लुभाएगा ...
सुबह इतनी पावन हो तो ...
मुग्ध कर दिया कविता ने ...!
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