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बुधवार, जून 08, 2011

देखो, मैं कितना गोरा हूँ : क्या मुझको पहचाना?

गूगल पर खोज करते हुए आज मुझे 
यह विलक्षण फ़ोटो मिला! 
मैं तो इसे पहचान ही नहीं पाया! 
अनुमान लगाते हुए एक कविता भी रच गई!
अब आप सबकी मदद चाहिए! 
किसका हो सकता है, यह फ़ोटो? 
नाम तो आपको ही बताना है! 
कई संकेत इस कविता में छुपे हुए हैं!  

देखोमैं कितना गोरा हूँ!


मुझमें अंग-अंग है आता,
रगों-रगों से मैं बन जाता!

लगता तो बिल्कुल बोरा हूँ,
देखोमैं कितना गोरा हूँ!

खर्र-खर्र भी है मुझमें,
गोश्त बहुत-सा है मुझमें!

अंगूरों की याद दिलाता,
राख मिला पहचाना जाता! 


रावेंद्रकुमार रवि

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया!
अच्छी पहेली है!
उत्तर तो मुझे पता है,
मगर बताऊँगा नहीं!

बेनामी ने कहा…

ताऊ जी , यह है खरगोश .pluspets.net

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

प्रिय सृजन,
अभी कुछ कसर रह गई है!
यह उत्तर पूरी तरह से सही नहीं है!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

पहले मयंक दादा जी बताएँगे, फिर हम बच्चों की बारी...

Kashvi Kaneri ने कहा…

यह है खरगोश या पपी भी होसकता है कुछ और भी… अब आप ही बताओ

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर कविता बन पड़ी है.....

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

आपको तो कमाल का फोटो मिला ....कविता भी सुंदर

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

इस पोस्ट के संबंध में फ़ेसबुक पर Raja Lambert --
Nice poem but mysterious animal....
Hopefully a Rabbit.
Keep on posting such simple
and easily understandable poems for the public.
Such poems takes us back to our elementary schooling days
where we use to recite such simple and meaningful poems.
Now a days such poems are very rare...........
seldom seen on Saras Paayas.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अरे भाई!
यह तो बिल्ली है!

Richa P Madhwani ने कहा…

बहुत बढ़िया!

Telkom University ने कहा…

In what ways does the concept of skin color play a role in your cultural or social context?Telkom University

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