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गुरुवार, जून 30, 2011

मेघ बजे : बाबा नागार्जुन का एक लोकप्रिय बालगीत



मेघ बजे



धिन-धिन-धा धमक-धमक, मेघ बजे।
दामिनि यह गई दमक, मेघ बजे।


दादुर का कंठ खुला, मेघ बजे।
धरती का हृदय धुला, मेघ बजे।
धिन-धिन-धा धमक-धमक, मेघ बजे।


पंक बना हरिचंदन, मेघ बजे।
हल का है अभिनंदन, मेघ बजे।
धिन-धिन-धा धमक-धमक, मेघ बजे।


नागार्जुन

(यह गीत उत्तराखंड में कक्षा - सात की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक में शामिल है।)

(सभी चित्र : गूगल खोज से साभार)

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यव्सथापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल उद्देश्य से दी जा रही है!

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

सुंदर चित्र सुंदर कविता ....

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर कविता, सुंदर चित्र

जीवन और जगत ने कहा…

महान जनकवि नागार्जुन की दुर्लभ कविता को पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्‍यवाद। यूपी बोर्ड में हाईस्‍कूल में मैनें उनकी एक अन्‍य कविता 'बादल को घिरते देखा है' पढ़ी थी। आज एक और कविता वर्षा ऋतु पर पढ़ने को मिल गयी।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

रवि जी बाबा नागार्जुन की इस अनमोल बाल रचना को साझा करने का आभार

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सुन्दर चित्र और बहुत सुन्दर कविता...बधाई

बेनामी ने कहा…

Your poem is a very well written and drawing is to very nice 🙏🙏❤🙏🙏

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