गुड्डा हो गया बुड्ढा।
धागे से लटका था।
सारा उसका जीवन,
गाड़ी में भटका था।
हिलते-हिलते बाबा,
इक दिन टूटा धागा।
धम से कूदा गुड्डा,
धागा ले के भागा।
आन्या ने तब पकड़ा,
समझा उसका दुखड़ा।
माँ ने धागा बदला,
और सँवारा मुखड़ा।
फिर से हो गया गुड्डा।
एक दिन लटके-लटके गुड्डे का धागा टूट गया।
आन्या की माँ ने गुड्डे को डिक्की में फेंककर नई बत्तख लटका दी।
लेकिन आन्या को वह पसंद नहीं आई।
उसे तो वही गुड्डा चाहिए था।
आखिरकार माँ को गुड्डे की मरम्मत करनी पड़ी।
टूटा धागा जोड़ना पड़ा और उसमें गुड्डे को सिलकर फिर से उसे
कार में लटका दिया गया।
यह देखकर आन्या ख़ुश हो गई।
ऊपरवाले चित्र में आन्या इसी गुड्डे से खेल रही है।)
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छायाकार : प्रवीण सक्सेना (आन्या के नाना)
13 टिप्पणियां:
सुन्दर कविता है, बच्चों की एक अच्छी भावना को दिखाया है , वो सिर्फ प्रेम जानते हैं , उनके लिए नया नहीं प्यारा ही चाहिए .
बहुत सुन्दर रचना!
शीशे में अटका था,
धागे से लटका था।
सारा उसका जीवन,
गाड़ी में भटका था।
वाह नानी हो तो ऐसी। आन्या और नानी को बधाई सुन्दर रचना के लिये।
आन्या के प्रेमभाव को दर्शाती सुन्दर अभिव्यक्ति....
गुड्डा तो बुड्ढा से फिर गुड्डा हो गया..पर जब लोग बुड्ढे हो जाते हैं उनका क्या ?
बहुत सुन्दर बाल कविता..मजेदार.
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'पाखी की दुनिया' में 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' जरुर देखें !
बहुत ही प्यारा सा बालगीत!
गाड़ी में जो गुड्डा लटका है वह सीनचैन जैसा है.. आजकल बच्चों के बीच यह पात्र काफी लोकप्रिय है।
सचमुच बच्चों के बीच रहकर आप हर रोज एक नया जीवन तो जीते ही है।
पूर्णिमा वर्मन तो हैं ही सिद्धहस्त कवयित्री ।जब आन्या की नानी के रूप में लिखना हो तो फिर तो पूरी सृष्टि अपने सहज भाव में शब्दों का आकार ले लेगी।
sundar
sundar kavita, pyari kavita. purnima jaisi hi nyari kavitaa badhai.
गिरीश पंकज (girish pankaj) जी की टिप्पणी का लिप्यांतरण --
सुंदर कविता, प्यारी कविता!
sundar kavita, pyari kavita.
पूर्णिमा-जैसी ही न्यारी कविता, बधाई!
purnima jaisi hi nyari kavitaa badhai.
जीवंत बाल कविता हेतु साधुवाद. कविता और अन्य दोनों बेहद प्यारी हैं. आन्या के लिये उपहार
आन्या गुडिया प्यारी,
सब बच्चों से न्यारी।
गुड्डा जो मन भाया,
उससे हाथ मिलाया।
हटा दिया मम्मी ने,
तब दिल था भर आया ।
आन्या रोई-मचली,
मम्मी थी कुछ पिघली।
नया खिलौना ले लो,
आन्या को समझाया ।
आन्या बात न माने,
मन में जिद थी ठाने ।
लगी बहाने आँसू,
सिर पर गगन उठाया ।
आये नानी-नाना,
किया न कोई बहाना ।
मम्मी को समझाया
गुड्डा वही मंगाया ।
मम्मी ने ले धागा ,
कार में गुड्डा टाँगा ।
आन्या झूमी-नाची,
गुड्डा भी मुस्काया ।
फिर महकी फुलवारी,
आन्या गुडिया प्यारी।
प्रेरणादायक इन सुंदर टिप्पणियों के लिये मित्रों, साहित्यकारों, पाठकों सभी का हार्दिक आभार। लगा जैसे आन्या को बहुत सारा आशीर्वाद मिल गया। इस आशीर्वाद से सबसे ज्यादा खुश हुई आन्या की माँ- इला और वह कहती है, "माँ मेरी ओर से भी सबको धन्यवाद कहना।"
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