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शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

किलक उठा मन : रावेंद्रकुमार रवि की एक बालकविता

किलक उठा मन

बादल मशकें
भर-भर लाए
सागर के पानी से नभ में!
लगे छिड़कने
फिर यह पानी
वे धरती के हर उपवन में!



गरमी से आकुल
धरती पर
जब पानी का पड़ा फुहारा!
लगी पुलकने
खुश हो धरती
भूल गई अपना दुख सारा!



उपवन-उपवन
लगा चहकने
ओढ़ दुशाला हरियाली का!
रंग-बिरंगे फूल
खिल उठे
किलक उठा मन हर माली का!


रावेंद्रकुमार रवि

10 टिप्‍पणियां:

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत बढ़िया बालगीत रवि जी----बारिश का बेहतरीन चित्रण किया है आपने। बच्चों को बहुत भायेगा यह गीत।

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

बच्चे गीत गुनगुन कर बारिश का आनन्द तो उठायेंगे ही---साथ ही प्रचलन से गायब हो गये शब्द (मशक) के बारे में भी जानेंगे। बहुत सुन्दर बाल गीत।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर।

डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरी ने कहा…

BAHUT SUNDAR KAVITA...AUR BAHUT SUNDAR PHOTO BHEE...BADHAI..

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरी की टिप्पणी का लिप्यांतरण -

बहुत सुंदर कविता...
BAHUT SUNDAR KAVITA...

और बहुत सुंदर फ़ोटो भी...
AUR BAHUT SUNDAR PHOTO BHEE...

बधाई..
BADHAI..

Chinmayee ने कहा…

बहुत सुन्दर

Chinmayee ने कहा…

अंकल जी, आप मेरे ब्लॉग से कोई भी चित्र ले सकते हैं .. मैं तो इसे अपनी खुशकिस्मती समझूंगी ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत ...आनंद आ गया पढ़ कर ..

रंजन ने कहा…

बहुत सुन्दर///

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

मेल से भेजा गया संदेश -

आपकी कविता पढ़ी।
APKI KAVITA PARHI.
सुंदर रूप में प्रस्तुत की है। साधुवाद।
SUNDER ROOP MAI PRASTUT KI HAI.SADHUBAD.
मेरी कोई बाल कहानी या बाल कविता
MERI KOEE BAL KAHANI YA BAL KAVITA
आपके पास है यै नहीं?
AAPK PAS HAI YA NAHI?

डॉ. दिनेश पाठक शशि (मथुरा)
DR.DINESH PATHAK SHASHI (MATHURA)

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