बादल मशकें
भर-भर लाए
सागर के पानी से नभ में!
लगे छिड़कने
फिर यह पानी
वे धरती के हर उपवन में!
धरती पर
जब पानी का पड़ा फुहारा!
लगी पुलकने
खुश हो धरती
भूल गई अपना दुख सारा!
लगा चहकने
ओढ़ दुशाला हरियाली का!
रंग-बिरंगे फूल
खिल उठे
किलक उठा मन हर माली का!
रावेंद्रकुमार रवि
10 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया बालगीत रवि जी----बारिश का बेहतरीन चित्रण किया है आपने। बच्चों को बहुत भायेगा यह गीत।
बच्चे गीत गुनगुन कर बारिश का आनन्द तो उठायेंगे ही---साथ ही प्रचलन से गायब हो गये शब्द (मशक) के बारे में भी जानेंगे। बहुत सुन्दर बाल गीत।
बहुत सुंदर।
BAHUT SUNDAR KAVITA...AUR BAHUT SUNDAR PHOTO BHEE...BADHAI..
डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरी की टिप्पणी का लिप्यांतरण -
बहुत सुंदर कविता...
BAHUT SUNDAR KAVITA...
और बहुत सुंदर फ़ोटो भी...
AUR BAHUT SUNDAR PHOTO BHEE...
बधाई..
BADHAI..
बहुत सुन्दर
अंकल जी, आप मेरे ब्लॉग से कोई भी चित्र ले सकते हैं .. मैं तो इसे अपनी खुशकिस्मती समझूंगी ...
बहुत सुन्दर गीत ...आनंद आ गया पढ़ कर ..
बहुत सुन्दर///
मेल से भेजा गया संदेश -
आपकी कविता पढ़ी।
APKI KAVITA PARHI.
सुंदर रूप में प्रस्तुत की है। साधुवाद।
SUNDER ROOP MAI PRASTUT KI HAI.SADHUBAD.
मेरी कोई बाल कहानी या बाल कविता
MERI KOEE BAL KAHANI YA BAL KAVITA
आपके पास है यै नहीं?
AAPK PAS HAI YA NAHI?
डॉ. दिनेश पाठक शशि (मथुरा)
DR.DINESH PATHAK SHASHI (MATHURA)
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