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गुरुवार, अगस्त 19, 2010

इस पर मन बलिहारी है : डॉ. बलजीत सिंह की एक बालकविता

इस पर मन बलिहारी है

Waterfall

पर्वत से जो है उगता, उठता, गिरता है चलता।
इसमें अति उत्साह भरा, रूप बहुत निखरा-निखरा।

यह पत्थर से टकराता, हर बाधा को ठुकराता।
गति है इसमें वीरों की, चमक-दमक है हीरों की।

झर-झर झरना झरता है, कल-कल स्वर कर बहता है।
इसकी ध्वनि अति प्यारी है, इस पर मन बलिहारी है।

डॉ. बलजीत सिंह के संग्रह
गाओ गीत, सुनाओ गीत से साभार
(चित्र : A Broken World से साभार)
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4 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर भाव युक्त कविता

राजभाषा हिंदी ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति!
राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

बज़ (Buzz) पर मनोज कुमार (Manoj Kumar) ने कहा –

सरस कविता। सुंदर।

Coral ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है !

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