नीलगगन में घूम रहा हूँ!
ऊपर-नीचे, इधर-उधर, फिर उधर-इधर !
मुझे मचाती हुई गुदगुदी,
संग चल रही हवा सलोनी!
शोर मचाती, सरर-फरर, फिर फरर-सरर !
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7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर !
बहुत सुन्दर ध्वनि है इस कविता में ।
बहुत सुंदर रचना ओर तीनो चित्र भी अति सुंदर. धन्यवाद
Bahut hi pyari bal kavita......
achha laga padhkar.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।
एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें
कविता व चित्र देख कर मन खुश होगया ।
कित्ती प्यारी रचना और चित्र भी खूब...
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