आज पतंग उड़ाऊँगा!
डोर बहुत मज़बूत बाँधकर,
मैं भी पेंच लड़ाऊँगा!"
माँ जी बोलीं - "तुम बच्चे हो,
बात पेंच की करते हो!
मोटी बिल्ली घूम रही है,
क्या उससे ना डरते हो?"
"ऐसे-ऐसों को तो दिनभर,
ख़ूब छकाया करता हूँ,
चूहा बोला - "बिल्ली क्या है?
मैं न किसी से डरता हूँ।"
12 टिप्पणियां:
वाह..
चूहा बोला - "बिल्ली क्या है?
मैं न किसी से डरता हूँ।
.........बहुत खूब, लाजबाब !
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
बहुत सुन्दर !
बहुत सुन्दर ....
बहुत अच्छी शिशु कविता
चित्र के साथ शर्मा जी की कविता बहुत मेल खा रही है!
जय हो !
bahut sundar aur maasoom kavita...
बहुत सुन्दर बाल गीत और आकर्षक प्रस्तुति---कवि एवम चित्रकार दोनों लोगों को हार्दिक बधाई।
बहुत बेहतरीन!!
दीन दयाल जी कविता बहुत अच्छी लगी। बधाई।
रावेन्द्र रवि जी, डॉ.मयंक जी और सभी टिप्पणीदाताओं को तहे दिल से आभार...
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